अक्षय तृतीया : अतिथि सत्कार से प्रसन्न होकर दुर्वासा ऋषि ने द्रोपदी को दिया था अक्षय पात्र
पावन पर्व पर कोरोना का संकट
काशी के विद्वान बोलें लॉकडाउन के चलते घर से ही करे विष्णु की आराधना
#Varanasi : अक्षय तृतीया का पावन पर्व 26 अप्रैल दिन रविवार को मनाया जा रहा है। कोरोना वायरस के कारण लाकडाउन के कारण देशभर में लोग घरों में रहने के लिए मजबूर हैं। इस कारण देशभर के मंदिर में भी प्रवेश प्रतिबंधित है। काशी के प्रख्यात विद्वान पंडित लोकनाथ शास्त्री ने बताया कि इस संकट के समय में सभी को घर में रहकर ही विष्णु भगवान की अराधना करनी चाहिए। पंचांग के अऩुसार अक्षय तृतीया बहुत ही शुभ दिन है। कहा जाता है कि इस दिन दिन कमाया गया पुण्य अक्षय रहता है।

शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु की पूजा होती है और शुभ मुहूर्त में सोना खरीदा जाता है। अक्षय तृतीया शनिवार को दिन में 11.52 बजे से शुरू हो गई। प्रदोष काल शाम को 6.26 से 8.40 बजे तक रहा। ज्योतिषी कहते हैं कि रविवार को भी अक्षय तृतीया का मुहूर्त रहेगा। लोग वृष लग्न में सुबह 6.30 से 8.40 बजे तक, ङ्क्षसह लग्न में 12.58 से 3.12 बजे तक पूजन करें। उदया तिथि से मानने वाले लोग प्रदोष पूजन शाम को भी कर सकते हैं। तृतीया मान जो 27 अप्रैल को दोपहर 02:29 बजे तक है। अक्षय तृतीया पर सोना खरीदने का समय 26 अप्रैल को दिन में 11 बजकर 51 मिनट से शाम को 05 बजकर 45 बजे तक है।
भगवान विष्णु की करे आराधना
अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु के सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। वहीं इस दिन सुबह सवेरे स्नान करने के बाद भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान को जौ, सत्तू या फिर चने की दाल जो घर पर हो अर्पित करें। पितरों की शांति के लिए अक्षया तृतीया को बहुत विशेष माना जाता है। इस दिन पितरों की शांति के लिए भी गरीबों को दान किया जाता है। कहते हैं जो व्यक्ति इस दिन दान करता है। उसे अक्षय लाभ मिलता है। इस दिन सुख समृद्धि और सौभाग्य की कामना के लिए शिव-पार्वती और नर नारायण की पूजा भी की जाती है। इसके अलावा मां लक्ष्मी की पूजा करने का भी इस दिन विधान है।
यह है पौराणिक इतिहास
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया को ही त्रेता युग का प्रारंभ हुआ था। मान्यता है कि महाभारत में भी अक्षय तृतीया की तिथि का जिक्र है। महाभारत में बताया गया है कि इस दिन दुर्वासा ऋषि ने द्रोपदी को अक्षय पात्र दिया था। महाभारत में बताया जाता है कि जब पांडवों को वन में 13 सालों के लिए जना पड़ा तो एक दिन उनके वनवास के दौरान दुर्वासा ऋषि उनकी कुटिया में आए। ऐसे में सभी पांडवों और द्रोपदी ने घर में जो कुछ रखा था उनसे उनका अतिथि सत्कार किया। दुर्वासा ऋषि द्रोपदी के इस अतिथि सत्कार से बहुत प्रसन्न हुए। जिसके बाद उन्होंने प्रसन्न होकर द्रोपदी को अक्षय पात्र उपहार में दिया। साथ ही दुर्वासा ऋषि ने यह भी कहा कि इस दो व्यक्ति भक्तिभाव से भगवान विष्णु जी की पूजा करेगा और गरीब को दान देगा, उसे अक्षय फल की प्राप्ति होगी। इसलिए इस दिन भगवान विष्णु को नैवेद्य में जौ या गेहूं का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अर्पित किया जाता है। इस बार कोरोना वायरस लॉकडाउन में घर पर रहकर ही भगवान विष्णु की पूजा करें।