#बतकहीबाज : वह आज के दौर में अज्ञानी कहलाता है, नहीं?

व्यंग्य

हमेशा की तरह इस दफा भी बात थोड़ी खर्री है। हो सकता है मेरे कई अपने खफा हो जाएं! विश्वास करिए, इस व्यंग्य का आप से कोई सरोकार नहीं है! याद होगा! अपने पिछले व्यंग्य की कड़ी में मैंने लिखा था ‘मिस्ड कॉल! भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों काल दोनों भूल जाते थे’। स्पष्ट किया था, एक सज्जन मेरे परिचित हैं, उनको दोस्त नहीं कहूंगा, बस मेरे जानने वाले हैं। पढ़ा होगा आपने! इस दफा आपको अपना मित्र बता रहा हूं। मेरा मित्र होने का मतलब बुझा रहा है न? बात दरअसल ऐसी है, बंधु! चमचों का है जहान, चमचे हैं महान, चमचागिरी एक कला है, इस कला से जो अछूता है वह आज के दौर में अज्ञानी कहलाता है, नहीं? चमचे की भार संभालना सिर्फ और सिर्फ चमची के बस की बात है।

एक तरीके से आत्मविद्या

चमचागिरी एक तरीके से आत्मविद्या है। जो मानुष आत्मविद्या समझता है, वह चमचानंद होने के नाते करमचंद और ज्ञानचंद का शुरुआती दौर से दुश्मन होता है। जैसे चमचा कढ़ाई का पूरा माल हिलाता है ठीक उसी तरीके से चमचे हर जगह, हर वक्त सबको हिलाने का काम करते हैं। गौर करिए, चमचे हमेशा वही कहते हैं जो उनका आका नहीं कह पाता। चमचों के बयान पर आका की चुप्पी दर्शाती है कि मौन ही अभिव्यंजना है?

बड़के वाले महान

चमचागिरी का अर्थ जानते हैं? अगर हां तो आप बड़के वाले महान हैं, नहीं? फिर लोश फरमाइए, बॉस हमेशा चमचों के कंधे पर हाथ फेर कर अपने मन की बात करते हैं। अब सीधा बॉस का फरमान हो, ऐसे हालात में किसकी मजाल जो छेड़े दिलेर को? बॉस की धोने में चमचा कोई कसर नहीं छोड़ता। धोते जाता है। वक्त-समय पर पाला भी चेंज करता है। मुनाफे की बात मत करिए, चमचा सिर्फ और सिर्फ स्वार्थ सिद्धि मंत्र जानता है, उसी को मानता है। मुझे फुल यकीन है आप चमचागिरी में विश्वास नहीं रखते, क्यों?