भगत सिंह

जिन्हें हम भुला नहीं सकते, भगत सिंह के दिल में बसता था बनारस

पहली बार क्रांतिकारी सचिंद्र नाथ सान्याल की थी काशी में मदद

महामना ने की थी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी रुकवाने की कोशिश

वाराणसी। देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी दी गई थी। भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था। भगत सिंह का बनारस से भी नाता रहा है। उस शख्स के सीने में एक दिल भी था जो कभी-कभी दुविधा से घिर जाता था और इसे इत्तेफाक ही कहेंगे कि ज्यादातर मौकों पर बनारस ने किसी न किसी रूप में उनकी मदद की। उन्होंने अपनी लिखी विभिन्न चिट्ठियों में कई स्थानों पर बनारस का जिक्र किया है।

पहली बार बनारस में भगत सिंह की मदद सचिंद्र नाथ सान्याल ने की थी। काशी में पैदा हुए सान्याल अपने समय के सम्मानित क्रांतिकारियों में थें। उन्होंने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की स्थापना की थी। महात्मा गांधी द्वारा 1922 में असहयोग आंदोलन वापस लेने के बाद देश के युवाओं को इस संगठन ने राह दिखाने का काम किया था। 1924 में भगत सिंह ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण की थी। इसी के माध्यम से उनकी मुलाकात चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल आदि क्रांतिकारियों से हुई थी। बाद में इसी संगठन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन कर दिया गया।

राजगुरु से पहली बार बनारस में हुई थी मुलाकात!

कुछ दस्तावेज बताते हैं कि भगत सिंह और राजगुरु की पहली मुलाकात भी संभवत: बनारस में ही हुई थी। यह पहली मुलाकात इतनी मजबूत थी कि मौत भी इसे तोड़ न सकी। संभवत: 1924 में ही राजगुरु संस्कृत पढ़ने के लिए बनारस आए। यहीं वो क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।

शादी की दुविधा भी सचिंद्र शान्याल ने दूर की

भगत सिंह के जीवन में एक मोड़ तब आया था जब उनका परिवार शादी के लिए उनके पीछे पड़ गया था। जब उन्हें कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने बनारस निवासी अपने प्रेरणास्रोत सचिंद्र नाथ सान्याल को पत्र लिखा। मार्ग प्रशस्त करने की गुजारिश की। जवाब में सचिंद्र नाथ सान्याल ने लिखा, विवाह करना या न करना तुम्हारी इच्छा पर निर्भर करता है। लेकिन, इतना जरूर कहूंगा कि शादी के बाद देश के लिए बड़ा काम करना तुम्हारे लिये संभव नहीं होगा। यदि तुमने खुद को देश के लिए समर्पित कर दिया है तो विवाह के बंधन को अस्वीकार कर दो। देश को तुम्हारी आवश्यकता है।

महामना ने की थी फांसी रुकवाने की कोशिश

महामना मदन मोहन मालवीय के मन में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के लिए अपार प्रेम और श्रद्धा थी। उनको जब इन तीनों लोगों की फांसी की सजा का पता चला तो वो भी पूरे देश की तरह बेचैन हो गये। इसके बाद 14 फरवरी 1931 को वो खुद लॉर्ड इरविन के पास एक दया याचिका लेकर गए। इसमें उन तीनों की फांसी पर रोक लगाने और उनकी सजा को कम करने का आग्रह किया गया था।

शहीद होने से पहले कई क्रांतिकारी आ चुके थे बनारस

शहीद होने से पहले कई क्रांतिकारी बनारस आए थें। यहां छिपने के ठिकानों पर रुकते थें। आगे की कार्ययोजना बनाकर चले जाते थें। बनारस के बालाजी घाट, रामकुंड और बेनिया अखाड़े के आसपास छिपते थें। बनारस से कई क्रांतिकारियों का काफी जुड़ाव रहा है। अक्सर रामकुंड अखाड़े में क्रांतिकारी छिपते थें। यहां उनके लिए खाने-पीने का इंतजाम यहां के धनी लोग करते थें। इसके अलावा बालाजी घाट, बेनिया अखाड़ा और शहर के कई क्षेत्रों में सभी छिपकर रहते थें।