Guest Writer : अल्फाज नहीं हासिल बेवफा तेरी जानिब़, फरेब़ तेरा मैं क्यों झुठला रहा हूं
Banke Banarasi Pankaj मैं तुम्हें ना कुछ बता रहा हूं ना कुछ छुपा रहा हूं, दरअसल दिल को ज़रा बहला फुसला रहा हूं। जानता हूं बेशक हर राज ए जमाना फिर भी, अश्कों से हकीकत ए दिल छुपाए जा रहा हूं। वाकिफ हूं हर हाल ए मुफलिसी से फिर भी, पसीने में सनी रोटी घर लेके आ रहा हूं। खयालों में मेरे शामिल हैं जिसकी शोखियां, उनकी यादों को हिचकीयां मैं फिर लौटा रहा हूं। अल्फाज नहीं हासिल बेवफा तेरी जानिब़, ‘बांके’ फरेब़ तेरा मैं क्यों झुठला रहा हूं। Disclaimer…
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