Varanasi : हिमालय से ऊंचा मान, यह हैं वर्दी में तूफ़ान

जानिए जाबांज सीआरपीएफ कमांडेंट के बारे में।

Varanasi : अल्ल सुबह सेना की वर्दी में तीन आतंकी सीआरपीएफ कैम्प में घुसपैठ करने की कोशिश करते हैं। पास की एक बिल्डिंग पर कब्जा जमा लेते हैं। सीआरपीएफ जवानों और आतंकियों में मुठभेड़ शूरू हो जाती है। दोनों तरफ से गोलियों की बौछार होने लगती है। सीआरपीएफ की तरफ से मुठभेड़ का नेतृत्व कर रहा एक गोरा चिट्टा अधिकारी बेखौफ हो बख्तर बन्द गाड़ी के पीछे से असाल्ट राइफल से गोलियां चलाते हुए जवानों का हौसला बढ़ा रहा है। अचानक से आतंकीयों की तरफ से फेंका गया एक बम उस अधिकारी से कुछ दूरी पर आकर गिरता है। और वह अधिकारी अपने बचाव के लिए जमीन पर लेटते हुए अपने हाथ के पंजो को आगे कर देता है। और एक जोरदार आवाज के साथ बम विस्फोट कर जाता है। उस अधिकारी के हाथों में बम के छर्रे अंदर तक धँस जाते हैं। वह अधिकारी लहूलुहान हो जाता है। मगर वह उठता है,जख्मी पंजों पर पट्टी बंधवाता है। और बजाय रेस्ट करने या हॉस्पिटलाइज होने के वह टपकते खून वाली हथेलियों से फिर से आतंकीयों के ऊपर हमलावर हो जाता है। पहले के ही तरह बेखौफ, बिंदास और जज्बे के साथ। और जब मुठभेड़ समाप्त होती है। तो तीनों आतंकी ढेर हो चुके होते हैं।

यह घटना आज से लगभग तीन साल पूर्व की है। स्थान जम्मू-कश्मीर ।

मुठभेड़ के कुछेक साल बाद उस जाबांज अधिकारी को वीरता पुरस्कार से नवाजा गया। उस दिलेर अधिकारी का नाम है नरेंद्र पाल सिंह।

हाल तैनाती 95 बटालियन सीआरपीएफ कमांडेंट नरेंद्र पाल सिंह जी जितने बाहर से सुंदर हैं उससे कई गुना ज्यादा अंदर से सुंदर हैं। मने खूबसूरती, बुद्धी, कौशल जिंदादिल बहादुरी की मिशाल। व्यक्तित्व इतना आकर्षक और ऊर्जा से भरा हुआ है कि कोई एक बार उनसे मिल ले तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह बार बार मिलना चाहेगा। हमारी मुलाकात औपचारिक हुई थी। अमूमन खबरों के सिलसिले में अधिकतर सिविल पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से मुलाकात होती रही है। मगर कभी ऐसा मौका नहीं आया कि सैनिक या अर्धसैनिक बल के उच्चाधिकारियों से मुलाकात हो। वैसे सभी फोर्सेज के जवानों के प्रति सम्मान तो दिल की धड़कनों तक पैवस्त है । इसका कारण यह है कि एक तो मैं स्वयं फोर्स का हिस्सा बनना चाहता था। दूजा यह कि कई जगह अर्धसैनिक बल के जवानों ने मेरी मदद की है। कभी लिखूंगा उसपर भी।

95 बटालियन सीआरपीएफ लॉक डाऊन के बाद से ही लोगों की मदद कर रही है,इसी सिलसिले में खबरों के उद्देश्य से हम और छोटे भाई सरीखे पत्रकार राजीव सेठ पहड़िया मंडी स्थिति सीआरपीएफ मुख्यालय पहुँचे। वहां कमांडेंट नरेंद्र पाल सिंह गर्मजोशी और स्नेहिल व्यहवार के साथ मिलें,लगा जैसे पुराने परिचित हैं। उनसे कोरोना महामारी,लॉक डाऊन,सोशल डिस्टेंसिंग,बचाव सेनेटाइजेशन जरूरतमंदों को राशन सीआरपीएफ द्वारा राशन वितरण के साथ कश्मीर घाटी के सामान्य हालात पर घण्टों चर्चा हुई। तबसे आज का दिन खबर के साथ साथ सीआरपीएफ द्वारा जनता की मदद की मुहिम का “रत्ती भर” हिस्सा मैं भी बन गया।

सीआरपीएफ 95 बटालियन कमांडेंट नरेंद्र पाल सिंह के नेतृत्व में प्रतिदिन जरूरतमन्दों की मदद कर रही है। समन्यवय स्थापित करते हैं मस्तमौला इंस्पेक्टर राजीव तिवारी। और फिर जरूरतमंदों की हो जाती है मदद की तैयारी। इंस्पेक्टर राजीव तिवारी मृदभाषी मिलनसार के साथ साथ दुश्मनों के छक्के छुड़वा चुके हैं,इस बात की गवाही उनके शरीर गोलियों के निशान खुद ब खुद देते हैं। मित्र राजीव वैसे ही हैं जैसे बर्फ के कई परतों ने ज्वालामुखी को ढंक लिया हो।

खैर, मुख्य विषय यह है कि कश्मीर के तीन पत्रकार पुलित्जर पुरस्कार पाये हैं। यह वही हैं जो घाटी में सुरक्षाबलों के खिलाफ एजेंडा चलाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षाबलों की छवि खराब दिखाते हैं। सुनने में आया है कि राहुल गांधी भी उन्हें पुरस्कृत होने पर बधाई दिए हैं। पाकिस्तान भी उन पत्रकारों के पुरस्कृत होने पर खुश है। अब सोचिये की जिस पत्रकार के पुरस्कार पाने पर पाकिस्तान खुश हो,उसकी पत्रकारिता का विषय और स्तर क्या होगा। जिन्हें लगता है कि हमारे सुरक्षाबल घाटी में अमानवीय बर्बर तरीक़े अपनाते हैं। उन्हें यह जान लेना चाहिए अलगाववादी कश्मीरी कभी प्रेम की भाषा समझते ही नहीं हैं। अंततः सुरक्षा बलों को उनकी ही भाषा में उन्हें समझाना पड़ता है। और जो लोग मानवाधिकार की बात करते हैं तो उन्हें यह जान लेना चाहिए कि देश की सुरक्षा और मानवाधिकार का पालन एक साथ नहीं किया जा सकता। अपनी सेना पर गर्व कीजिए, उंगली उठाने का काम पाकिस्तान और अलगाववादीयों पर छोड़िये। क्योंकि सुरक्षाबल के जवान जिस दिन से वर्दी पहनते हैं उस दिन से अपना घर परिवार और अपनी निजी जिंदगी सब कुछ भूल जाते हैं। याद रहता है तो बस देश।

सोयें हम नीद भर, इसलिए वह अपनी नींद गवांते हैं। देश की अस्मत के लिए इरादों की बुलंदी के पार चला जाते हैं। गोलियों की तड़तड़ाहट के बीच वह बेखौफ बेशिकन मुसकुराते हैं।

जय हिंद, जय हिंद की सेना।

मेरे लिए हीरो तो यही हैं,#रियल #हीरो