@aajexpressdgtl #Exclusive : ‘रामायण’ के प्रसंग से जरूरत से ज्यादा इंप्रेसिव हुईं 11 साल की ‘नसरा खलीक’, मोहल्ले के लोगों के लिए इस तरह बनीं ‘नजीर’
SK Gautham
#Varanasi : … यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमन्ते तत्र देवता। भारत की आध्यात्मिक सोच की नारी सम्मान के भावना का केंद्र बिंदु है, जहां उम्मीदों पर बड़े से बड़े सिद्धि हासिल की जा चुकी है। कहते हैं एवरी क्लाउड हैज ए सिल्वर लाइनिंग…। अर्थात हरेक निराशा में एक उम्मीद की किरण छुपी रहती है। वर्तमान कितना भी अंधकारमय हो, उसकी गोद में सदैव भविष्य का सपना खेलता है। वैदिककालीन नारियों में गार्गी अपाला का नाम सम्मान से लिया जाता है।
दूसरों के लिए प्रकाशस्तंभ
लाॅकडाउन में घर की लक्ष्मण रेखा को न पार करने की गुजारिश का जहां एक तरफ बार-बार कुछ लोगों को माखौल उड़ाते देखा जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ समाज में ऐसे भी प्रेरणा स्रोत हैं जो दूसरों के लिए प्रकाशस्तंभ बनते हैं। इन्हीं में से एक नाम है शिवपुर में एक स्कूल के पास रहने वाली 11 वर्षीया नसरा खलीक का, जो अपने आचरण से परिवार के लिए ही नहीं बल्कि मोहल्ले में चर्चा और आदर का सबब बनी हैं। वह समाज को राष्ट्रप्रेम, संयम व धीरज का संदेश देकर अपना दायित्व निभा रही हैं।

घर की दहलीज के बाहर कदम नहीं रखा
दरअसल, मूल रूप से मोहम्मदाबाद (गाजीपुर) के निवासी हरहुआ ब्लाक में प्रधान सहायक के पद पर कार्यरत खलीक अहमद सिद्दीकी और दरख्शां बानों की ग्यारह वर्षीय पुत्री नसरा खलीक छठीं कक्षा की छात्रा हैं। प्रधानमंत्री की अपील पर इस कदर दृढ़प्रतिज्ञ हैं कि उन्होंने बीते एक माह से अधिक समय से घर की दहलीज के बाहर कदम नहीं रखा है। वह कहती हैं कि मोदी अंकल ने लक्ष्मण रेखा लांघने को मना किया है। यही नहीं, वह अपनी मां और बड़ी बहन को भी यदि बहुत जरूरी न हो तो घर से नहीं निकलने देतीं। पीएम मोदी की मुरीद बेटी की बातों और आचरण से जहां मां-बाप हैरत में हैं, वहीं उनकी खुशी का भी ठिकाना नहीं है। वह इन दिनों रामायण, महाभारत और शक्तिमान धारावाहिक देखने में समय बिता रही हैं।

सीता हरण का प्रसंग
रामायण में सीता हरण के प्रसंग में सीताजी के लक्ष्मण रेखा लांघने से हुई घटना ने उनके दिल को छू लिया। कहती हैं, रावण ने एक पतिव्रता नारी के साथ छल किया जिसका परिणाम हुआ कि उस कुल का नाश हो गया। नसरा खलीक दिन में दर्जनों बार न सिर्फ अपना हाथ धोती हैं बल्कि इसके लिए मां-बाप और बड़ी बहन को भी याद दिलाया करती हैं। पिता खलीक अहमद को हरहुआ ब्लाक अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों द्वारा पीपीई किट और मॉस्क आदि तैयार करने के काम की रोज मानीटरिंग, सहायता और रिपोर्टिंग के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है। छोटी नसरा उन्हें रोज जाते वक्त मॉस्क और सेनेटाइजर पकड़ाती हैं। प्रधानमंत्री से प्रभावित नसरा उनके संबोधनों और ‘मन की बात’ कार्यक्रमों को सुनना कभी नहीं भूलतीं।
जाति-धर्म नहीं राष्ट्र बड़ा
नसरा के मां-बाप पोस्ट ग्रेजुएट हैं। माता-पिता के आदर्श राष्ट्रवादी विचारों का नसरा पर बचपन से ही प्रभाव पड़ा है। जो सिर्फ राष्ट्रीयता के भाव से परिपूर्ण है। नसरा खलीक जैसी बच्चियां हमें यह सीख देतीं हैं कि भविष्य के प्रति नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं है। हम कोरोना को हराएंगे और भारत मे गंगा जमुनी तहजीब को मजबूती प्रदानकर ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ को मजबूती प्रदान करेंगे। राष्ट्र बड़ा होता है। कहती हैं, धर्म, जाति, सम्प्रदाय को लेकर नफरत की दीवार को सदा के लिए मिटाना हम सब की जिम्मेदारी है। भारत की मिट्टी किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, भाषावाद जैसी संकीर्णता में बंधी या घुली नहीं है। यह अनेकता में एकता का सुगंध बिखेर कर सबको जीवन, ज्ञान, ऊर्जा प्रदान करती है। हम सब भारतीय हैं, तिरंगे की शान को बचाकर कोरोना महामारी को देश से मिटाने का काम मिलजुलकर करेंगे।