#Exclusive : डॉक्टर भीमराव आंबेडकर को किया गया याद, 1956 में आये थे बनारस
कोरोना वायरस के चलते शोसल साइट्स के माध्यम से दी गई श्रद्धांजलि
लुंबनी से बोधगया होते हुए 23 नवंबर को पहुंचे थे काशी
वाराणसी। भीमराव आंबेडकर का 14 अप्रैल को जन्मदिन मनाया जाता है। विश्व कोरोना संक्रमण से लड़ रहा है। देश में लॉकडाउन के चलते लोग घरों में हैं। सभी उनके जयंती पर घरों से ही शोसल साइट्स के माध्यम अपनी-अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म आज ही के दिन यानी 14 अप्रैल, 1891 को महू, मध्यप्रदेश के एक गांव में हुआ था। बचपन से ही आर्थिक परेशानी देखने वाले भीमराव आंबेडकर ने विषम परिस्थितियों में पढ़ाई शुरू की थी।
1956 में आये थे बनारस
वाराणसी के सीनियर जर्नलिस्ट सुनील त्रिपाठी बताते हैं कि डॉ. भीमराव अांबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 में बौद्ध धर्म अपना लिया था। उन्होंने नागपुर के शिवाजी पार्क में करीब पांच लाख लोगों के साथ एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण कर पंचशील अपनाया था। बहुत कम लोग जानते होंगे कि इसके बाद पहली बार लुंबनी से बोधगया होते हुए वे 23 नवंबर को काशी पहुंचे थे। यहां उन्होंने सारनाथ में बौद्ध मंदिर में भी दर्शन किया था। जब डॉ. भीमराव अांबेडकर कैंट रलवे स्टेशन पर रात के एक बजे पहुंचे तो वहां बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के छात्रों के साथ बौद्ध अनुयायियों ने उनका भव्य स्वागत किया था। वे सारनाथ के बौद्ध मंदिर पहुंचे। 24 नवंबर को वे बीएचयू गए।
सभा को किया था संबोधित
24 नवंबर को उन्होंने सारनाथ में आयोजित सभा में कहा था कि बौद्ध धर्म के लोग हर रविवार को बौद्ध विहार जाएं। वहां उपदेश सुनें। बौद्ध धर्म केवल अछूतों के लिए ही नहीं, बल्कि मानव समाज के लिए कल्याणकारी धर्म है।
काशी विद्यापीठ छात्र संघ का किया था उद्धघाटन
काशी आगमन के समय बीएचयू के छात्रसंघ ने बाबा साहब के स्वागत के लिए आर्ट्स कॉलेज के मैदान में समारोह का आयोजन किया था। काशी आगमन के दरमियान ही उन्होंने काशी विद्यापीठ के छात्रसंघ का उद्घाटन किया था। उन्होंने कहा था कि बौद्ध के धर्म की शुरुआत ठोस आधार पर हुई है।