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चैत्र नवरात्र का चौथा दिन : काशी में देवी कूष्मांडा के दर्शन के लिए उमड़े श्रद्धालु, दर्शन-पूजन का है विशेष महात्म्य

Varanasi : चैत्र नवरात्र के चौथे दिन देवी कूष्मांडा के दर्शन-पूजन के लिए श्रद्धालुओं का हुजूम अलसुबह से ही दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर पर उमड़ा हुआ है।आज के दिन देवी भगवती के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा-अर्चना होती है। दुर्गा माता मंदिर में भोर से ही दर्शन-पूजन के लिए देवी कूष्मांडा के भक्तों का तांता लगा हुआ है।

पौराणिक मान्यता है कि जब सृष्टि नहीं थी तो तब देवी भगवती के कूष्मांडा स्वरूप ने ही सृष्टि का विस्तार किया था। देवी कूष्मांडा प्रकृति और पर्यावरण की अधिष्ठात्री हैं। कूष्मांडा देवी की आराधना के बगैर जप और ध्यान पूरा नहीं माना जाता है। दुर्गा माता मंदिर के महंत ने बताया कि माता को गुड़हल का फूल, नारियल और चुनरी चढ़ाई जाती है। देवी कूष्मांडा की आराधना ‘या देवी सर्वभूतेषु तुष्टि रुपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:…’ मंत्र का जाप करके की जाती है। देवी कूष्मांडा के मंदिर में दर्शन-पूजन से भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

देवी भगवती के कूष्मांडा रूप में तृप्ति और तुष्टि दोनों हैं। आज सब्जी और अन्न का दान फलदायी माना जाता है। देवी कूष्मांडा ने शाकंभरी का रूप धर कर धरती को शाक-सब्जी से पल्लवित किया था और शताक्षी बन कर उन्होंने असुरों का संहार भी किया था। बता दें कि लाल पत्थर से नागर शैली में बने देवी भगवती के इस मंदिर का जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में कराया गया था। यहां दर्शन-पूजन करने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। लाल पत्थर से नागर शैली में बने देवी भगवती के इस मंदिर का जीर्णोद्धार 17वीं शताब्दी में कराया गया था। यहां दर्शन-पूजन करने से श्रद्धालुओं की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।

इस मंदिर में यांत्रिक पूजा भी होती है। इस मंदिर का स्थापत्य बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा यंत्र यानी बीस कोण की यांत्रिक संरचना जिसके ऊपर मंदिर की आधारशिला रखी गई है। ऐसी मान्यता है कि शुंभ-निशुंभ का वध करने के बाद मां दुर्गा ने इसी मंदिर में विश्राम किया था। इस मंदिर में प्रतिमा के स्थान पर देवी भगवती के मुखौटे और चरण पादुकाओं की पूजा होती है।

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