चैत्र नवरात्र का चौथा दिन : आदिस्वरूपा के दर्शन के लिए देर रात से लगी लाइन, मां कुष्मांडा के दरबार में भक्तों की भीड़, मां श्रृंगार गौरी के पूजन का भी विधान
Varanasi : चैत्र नवरात्र के चौथे दिन मां कुष्मांडा के दर्शन का विधान है। काशी में इनका विशाल और प्राचीन जागृत मंदिर दुर्गाकुंड में है। चैत्र नवरात्र और वासंतिक नवरात्र में यहां हर दिन भक्तों का रेला उमड़ता है।
चैत्र नवरात्र के चौथे दिन माता कुष्मांडा का दर्शन शास्त्रों के अनुरूप किये जाते हैं। दुर्गाकुंड स्थित मां कुष्मांडा के मंदिर पर देर रात से ही दूर-दराज से आये भक्त लाइन में लग गए थे। सुबह मंगला आरती के बाद मंदिर के पट आम श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए खोल दिए गए।
चैत्र नवरात्र में गौरी दर्शन का भी महत्व है। मंगलवार को ज्ञानवापी परिसर स्थित श्रृंगार गौरी के दर्शन का विधान है। मंदिर के महंत ने बताया कि नवरात्रि में चौथे दिन देवी को कुष्मांडा के रूप में पूजा जाता है।














अपनी मंद, हल्की हंसी के द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इस देवी को कुष्मांडा नाम से अभिहित किया गया है। इसी देवी ने ब्रह्मांड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। मां की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं।
उन्होंने बताया कि भक्त पूरी निष्ठा और मन से देवी की पूजा करते हैं। भक्तों को लाल रंग की पोशाक में माता कुष्मांडा का श्रृंगार करना चाहिए। भक्तों को खुद नारंगी रंग के कपड़े पहनकर माता का आशीर्वाद लेना चाहिए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मां कुष्मांडा का अभिप्राय कुम्हड़ा से है।
अपनी हल्की सी मुस्कान मात्र से अंड (सृष्टि बीज) को उत्पन्न करने वाली होने के कारण इन्हें कुष्मांडा कहा गया है। यही आद्यशक्ति रुप हैं। शाकुंभरी रूप धर देवी ने शाक से धरती को पल्लवित किया और शताक्षी बनकर असुरों का संहार किया। यह प्रकृति और पर्यावरण की अधिष्ठात्री हैं। कुष्मांडा देवी की आराधना के बिना जप और ध्यान संपूर्ण नहीं होता।
