Guest Writer : अल्फाज़ किसी के इशारे बोलते हैं, अश़्क भी रुख़ से दिल की बोलते हैं

तेरी खामोशी में बहुत दम है, पर तू खामोश रहता कम है।
कभी श़ाख़ सहलाता है पत्ता बनकर, कभी फूलों से बिखरता है खुशबू बनकर, कभी गुस्ताखी तशरीफ़ की बन जाता है, तेरा तकल्लुफ भी इक सितम है।
उम्मीदों को एहसानों ने पाला है, उन्हें सिर्फ तारीफों ने संभाला है, जिन्हें झांकने की गिरेबां आदत ही नहीं, वो भी जानते हैं वक्त बड़ा बेरहम है।
अल्फाज़ किसी के इशारे बोलते हैं, अश़्क भी रुख़ से दिल की बोलते हैं, इरशाद कहे कौन तुझसे ‘बांके’, शायर कहां आशिकों से कम है।
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