Guest Writer : और उनको खुशकिस्मत कैसे कह दूं मैं, जिनके चिराग में गैरों का लहू जलता है

रंगे जूनून कभी-कभी रंगे सुकून लगता है, बिस्तर पर पड़ा जिस्म सारी रात जगता है।
परवाह बेपरवाह की अक्सर वोहि करते हैं, जिन्हें खुद का साया बोझ बड़ा लगता है।
और उनको खुशकिस्मत कैसे कह दूं मैं, जिनके चिराग में गैरों का लहू जलता है।
आ फिर से आईने तुझे तोड़कर बिखेर दूं, मुझे आज अपना चेहरा फिर से तन्हा लगता है।
उसके घर का पता मैं भूल भी गया तो क्या, वो ‘बांके’ है वो सबकी खबर रखता है।
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