बड़ी बोल मेहमान लेखक 

Guest Writer : और उनको खुशकिस्मत कैसे कह दूं मैं, जिनके चिराग में गैरों का लहू जलता है

रंगे जूनून कभी-कभी रंगे सुकून लगता है, बिस्तर पर पड़ा जिस्म सारी रात जगता है।

परवाह बेपरवाह की अक्सर वोहि करते हैं, जिन्हें खुद का साया बोझ बड़ा लगता है।

और उनको खुशकिस्मत कैसे कह दूं मैं, जिनके चिराग में गैरों का लहू जलता है।

आ फिर से आईने तुझे तोड़कर बिखेर दूं, मुझे आज अपना चेहरा फिर से तन्हा लगता है।

उसके घर का पता मैं भूल भी गया तो क्या, वो ‘बांके’ है वो सबकी खबर रखता है।

Disclaimer

Guest writer कॉलम के जरिए आप भी अपनी बात, शेर-ओ-शायरी, कहानी और रचनाएं लोगों तक पहुंचा सकते हैं। ‘आज एक्सप्रेस’ की तरफ से Guest writer द्वारा लिखे गए लेख या रचना में कोई हेरफेर नहीं की जाती। Guest writer कॉलम का उद्देश्य लेखकों की हौसला अफजाई करना है। लेख से किसी जीवित या मृत व्यक्ति का कोई सरोकार नहीं। यह महज लेखक की कल्पना है। Writer की रचना अगर किसी से मेल खाती है तो उसे महज संयोग माना जाएगा।

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