मेहमान लेखक 

Guest Writer : गंगयापहृते तस्मिन् नगरे नाग साह्वये, त्यक्त्वा निचक्षु नगरं कौंशांब्याम स निवत्स्यती

पुष्कर रवि शोध छात्र
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में प्राचीन भारतीय संस्कृति, इतिहास एवं पुरातत्व से स्नात्तकोत्तर अध्ययन के दौरान एक तथ्य पर मेरी नज़र गई। गंगयापहृते तस्मिन् नगरे नाग साह्वये। त्यक्त्वा निचक्षु नगरं कौंशांब्याम स निवत्स्यती॥ ज्ञात हुआ कि इस पौराणिक श्लोक के आधार पर स्व. ब्रज.बासी लाल ने यह मत व्यक्त किया कि जब हस्तिनापुर गंगा की बाढ़ से विनष्ट हो गया तब निचक्षु नामक शासक ने अपनी राजधानी हस्तिनापुर से हटाकर कौशाम्बी में स्थापित किया। इस आधार पर स्व. बी.बी लाल ने सन् 1954-55 के मध्य हस्तिनापुर उत्खनन के द्वारा 800 ई.पू में बाढ़ का साक्ष्य प्राप्त किया। परीक्षित के बाद निचक्षु पाँचवें कुरुवंशीय शासक थे। कौशाम्बी के छठीं शताब्दी ई.पू के प्रसिद्ध शासक उदयन के अठारह पीढ़ियों पहले निचक्षु हुए थे। इस तिथि के आधार पर स्व. लाल ने महाभारत युद्ध को 950 ई.पू की घटना माना। इस तथ्य ने पुरातत्व में मेरी रुचि को बढ़ा दिया।

बीते दिन 10 सितंबर को स्व. बी.बी. लाल के 101 वर्ष की आयु में निधन की खबर मिली। वे आजीवन पुरातत्व द्वारा भारतीय इतिहास को राष्ट्रवादी दृष्टिकोण से देखने की वकालत करते रहे। 2 मई 1921 को जन्मे स्व. लाल सन् 1968-1972 तक भारतीय पुरातत्व विभाग के डायरेक्टर जेनरल रहे। स्व. लाल को रामायण-महाभारत संबंधित पूरास्थलों पर उखनन कार्यों के लिए विशेष तौर पर याद किया जाएगा। वे सन् 1950 से नित नए खोज कार्यों में व्यस्त रहे तथा इतिहास की अनेकों अनसुलझी पहेलियों को सुलझाने का कार्य किया। महाभारत से जुड़े स्थलों के अतिरिक्त वाल्मीकि रामायण में वर्णित अयोध्या , नन्दिग्राम, शृंगवेरपुर, भारद्वाज आश्रम तथा चित्रकूट आदि स्थलों का उत्खनन स्व. लाल के नेतृत्व में ‘रामायण में वर्णित प्राचीन स्थलों के पुरातत्व’ नामक राष्ट्रीय योजना के आधार पर कराया गया। इसके अतिरिक्त स्व. लाल कालीबंगा आदि सिंधु-सारस्वत सभ्यता से जुड़े पुरस्थलों पर किये गए शोध कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं। इसके अतिरिक्त वे यूनेस्को की कई कमिटियों के सदस्य भी रहे। उनके भीतर भारत के इतिहास को वैश्विक प्रतिष्ठा दिलाने के लिए भारतीय सभ्यता की प्राचीनता ज्ञात करने के जूनून को पढ़ कर चाहे-अनचाहे मैं भी पुरातत्व की ओर खिंचता चला गया।

स्व. लाल और अयोध्या मंदिर विवाद

स्व. लाल ऐतिहासिक संशोधनवाद के मत के लिए विशेष तौर पर चर्चा में रहे। बाबरी मस्जिद विवाद के समय उन्होंने यह दावा किया कि मस्ज़िद के ढांचे के पूर्व उस स्थल पर मंदिर था। 1975 से 1980 के मध्य उनके निर्देशन में हुए उत्खनन द्वारा इस बात कि पुष्टि भी हुई। 1989 में भारतीय पुरातत्व विभाग को सौंपी गई रिपोर्ट में उन्होंने लिखा कि ” उनकी टीम को अयोध्या में बाबरी मस्ज़िद संरचना के दक्षिण में स्तम्भ के आधार मिले”। 1990 में अपनी सेवानिवृत्त के उपरांत उन्होंने आरएसएस की पत्रिका में लिखा कि उन्हें मस्जिद के नीचे एक स्तंभित मंदिर के अवशेष मिले हैं। सबूतों का प्रचार-प्रसार करते हुए पूरे देश में व्याख्यानों की बाढ़ आ गई। लाल की 2008 की पुस्तक, रामा, हिज हिस्टोरिसिटी, मंदिर एंड सेतु: एविडेंस ऑफ लिटरेचर, आर्कियोलॉजी एंड अदर साइंसेज में वे लिखते हैं- Attached to the piers of the Babri Masjid, there were twelve stone pillars, which carried not only typical Hindu motifs and mouldings but also figures of Hindu deities. It was self-evident that these pillars were not an integral part of the Masjid, but were foreign to it.
उन्होंने दावा किया कि मस्ज़िद के घटों से सटे हुए 12 प्रस्तर स्तंभों का प्रमाण मिला जिनपर ना केवल हिन्दू संस्कृति से जुड़े विभिन्न प्रतीकों का अंकन था, इनपर हिन्दू देवताओं की आकृतियाँ भी उकेरी गई थी जो इस बात का संकेत है कि यह स्तम्भ मस्ज़िद से भिन्न हैं।

इतिहास के संशोधन के लिए किए गए प्रचार-प्रसार के लिए उनकी जमकर आलोचना हुई। वामपंथी इतिहासकार डी. एन झा ने उनपर पुरातत्व के व्यवस्थित दुरुपयोग का आरोप लगाया। 2002 में अपनी पुस्तक ‘ द सरस्वती फ्लोज़ ऑन में’ तब के व्यापक रूप से स्वीकृत इंडो-आर्यन प्रवासन सिद्धान्त को सिरे से यह कह कर ख़ारिज कर दिया कि ऋग्वेद में सरस्वती नदी का विवरण मुख्यधारा के विचार को खंडित करता है। अपनी पुस्तक ‘ ‘द ऋग्वैदिक पीपल: ‘इनवेडर्स’ ? ‘आप्रवासी’? या स्वदेशी? ‘ में यह मत व्यक्त किया कि ऋग्वैदिक एवं सिंधु सभ्यता के निवासी एक ही थे। अपने राष्ट्रवादी मत के कारण लगातार वामपंथी विचारकों के आँख की किरकिरी बने रहने वाले स्व. लाल सभी कठिन परिस्थितियों के बीच लगातार उत्खनन एवं शोध कार्यों में व्यस्त रहे। पुरातत्व में उनके द्वारा किये उत्कृष्ट कार्यों के लिए सन् 2000 में पद्मभूषण एवं 2021 में पद्मविभूषण से नवाज़ा गया। स्व. लाल 2021 में डिस्कवरी चैनल पर रिलीज हुई नीरज पांडेय द्वारा निर्देशित डॉक्यूमेंट्री ‘सीक्रेट ऑफ सनौली’ में भी नज़र आए। पुरातत्व-इतिहास के छात्र एवं शोधकर्ताओं के प्रेरणास्रोत स्व. बी.बी. लाल, भारतीय इतिहास को राष्ट्रवादी गरिमा प्रदान कराने के लिए सदैव याद किये जाएंगे।

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