Guest Writer : किस्मत की बात है मैं किस्मत के भरोसे नहीं, कीमिया नहीं यहां मर्ज है बहुत

किसी का शक किसी का सच, किसी को ताज्जुब है बहुत, किसी का झूठ उम्दा है, कोई खुदगर्ज है बहुत।
आराम तलबी में फना है जिंदगी यूंहि, सुकूं के जिक्र भरको है जिंदा जिंदगी यूंहि, सफर की बात रस्ते में साये से क्यों करूं, मयनोशी से बहकने में यहां हर्ज है बहुत।
रहा खामोश तो सुना खुद के लिए मग़रूर, हां अस्मत के जिक्र पर चीखूंगा भी जरूर, जो साफगोई से रखते हैं बहुत दूरी, उनके कचहरी में किस्से दर्ज़ हैं बहुत।
मरासिम के मायने किसने कितने समझे हैं, सुदो जियां के फेर में आलिम भी देखो उलझे हैं, किस्मत की बात है मैं किस्मत के भरोसे नहीं, कीमिया नहीं ‘बांके’ यहां मर्ज है बहुत।
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