Guest Writer : बेहतर है मौन से दिल की कुछ सुनाऊं, लिखूं शब्द जुटाकर गला सुरीला बनाऊं

Banke Banarasi Pankaj
बेहतर है मौन से दिल की कुछ सुनाऊं, लिखूं शब्द जुटाकर गला सुरीला बनाऊं।
हां! निशब्द कभी कभार होना मुमकिन है, जरूरी नहीं हर मर्ज की दवा भी पाऊं।
ख़ुशबू गुलाब की वो अबभि मेरे जेहन में है, वो हसीन इशारा तेरा मैं कैसे भूल जाऊं।
कई ख़त तेरे अबभि यादों के सिरहाने में है, लिखता हूं गजल लेकिन कैसे तुझे सुनाऊं।
तुझे भूल कर ‘बांके’ जिंदा रहूं भी कैसे, दिल हूं कैसे आखिर धड़कन तुझे भुलाऊं।
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