Guest Writer : आईना हकीकत का हर वक्त पास रखता हूं, नामुमकिन में मुमकिन का एहसास रखता हूं

आईना हकीकत का हर वक्त पास रखता हूं, नामुमकिन में मुमकिन का एहसास रखता हूं।
मेरी आदतें बदलती नहीं वक्त के साथ, मैं वक्त के लिए हर वक्त कुछ रखता हूं।
अब भी जियारत का सलीका तो नहीं है लेकिन, मुस्कुराहट हर वक्त होठों के पास रखता हूं।
माज़ी मेरा मुझे कभी सोने नहीं देता, कानों में वही तेरी अब भी आवाज रखता हूं।
तेरी गली में जब भी आना हुआ ‘बांके’, मिलने का इरादा दिल के पास रखता हूं।
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