मेहमान लेखक 

Guest Writer : भूख न लगना नींद न आना, चलता रहता था ये भी सब

Banke Banarasi Pankaj

बांके बनारसी ‘पंकज’ (फाइल फोटो)

प्यार का पहला खत लिख़्खा जब, मैंने तो था सच लिख़्खा सब।

हर एहसास नया था मेरा, देखा था एक बार ही चेहरा, रास्तों से अनजान नहीं था, पर घर तेरा मालूम नहीं था, सच कहता हूं सच बोला था, झूठ समझ आता ना था तब।

दर-दर जाकर की थी दुआएं, हसरत थी तू बस दिख जाए, तेरा चेहरा तब दिखता था, जब मैं कोई ग़ज़ल लिखता था, भूख न लगना नींद न आना, चलता रहता था ये भी सब।

अब भी भूल नहीं पाता हूं, उस रास्ते पर जब जाता हूं, तेरा घर अब भी है शायद, पर कोई रहता ही नहीं है, तेरी खबर ‘बांके’ हूं चाहता, बदल गया है जबकि ही सब।

Disclaimer

Guest writer कॉलम के जरिए आप भी अपनी बात, शेर-ओ-शायरी, कहानी और रचनाएं लोगों तक पहुंचा सकते हैं। ‘आज एक्सप्रेस’ की तरफ से Guest writer द्वारा लिखे गए लेख या रचना में कोई हेरफेर नहीं की जाती। Guest writer कॉलम का उद्देश्य लेखकों की हौसला अफजाई करना है। लेख से किसी जीवित या मृत व्यक्ति का कोई सरोकार नहीं। यह महज लेखक की कल्पना है। Writer की रचना अगर किसी से मेल खाती है तो उसे महज संयोग माना जाएगा।

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