Guest Writer : अजनबी चेहरों से भी कुछ सीखा करो ऐ जिंदगी, गुमनाम भी कब तक रखोगे कोशिशों का कारवां

जिसको नहीं खुदकी ख़बर लो मेरी ख़बरें है यहां, कुछ तो होना चाहिए जिसको कह पाऊं नया।
उसकी चादर सिलवटों से सब बयां करती है पर, क्यों ज़ुबां गिनती नहीं खुदकी कोई खामियां।
अजनबी चेहरों से भी कुछ सीखा करो ऐ जिंदगी, गुमनाम भी कब तक रखोगे कोशिशों का कारवां।
कोई इक कोना तो दिल का दर्द के काबू में है, जो ढ़हाने में लगा है सब्र का भी आशियां।
गैर सारे आके मुझसे हाल मेरा पूछते हैं, हैं नदारत सिर्फ ‘बांके’ तेरी ही निशानियां।
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