Guest Writer : उम्मीदों का सफीना तो बढ़ाओ, समंदर से अभी दूर बहुत है तूफां

अश्कों छोड़ दो मेरे दस्त ए मिज़गां, हाल ए दिल कहभी सकती नहीं जुबां।
एक ही दामन तार-2 बार-2 करते हो, क्या आदत है हकीकत कर सकते नहीं बयां।
ज्यूं इश्क की सियाही जिंदगी रंग सकती है, हाफिज़ तेरी कलम से होगा नहीं अयाॅं।
चाहत ने बदल डाला है आलम ए निज़ाम, तेरी सोहबत में चहकती है मौज ए रवां।
‘बांके’ उम्मीदों का सफीना तो बढ़ाओ, समंदर से अभी दूर बहुत है तूफां।
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