Guest Writer : ख़्वाब है ऐसे जो सोने नहीं देते, छाले पैरों के तन ढ़ोने नहीं देते

क्या नापने चंद रस्ते ही पैदा हुआ हूं मैं, या दीदार ए मुख्त़लिफ़ ही पैदा हुआ हूं, कुछ तो खास होगा हां मुझे नहीं मालूम, जरूर कुछ तो करने ही पैदा हुआ हूं मैं।
ख़्वाब है ऐसे जो सोने नहीं देते, छाले पैरों के तन ढ़ोने नहीं देते, तड़पते हैं नींदिया को नैना युंहि, परवाह बन ख़्वाबों की पैदा हुआ हूं मैं।
कोशिशों को अपनी मैं खुद ही सताता हूं, घाव बेबसी के अभावों को दिखाता हूं, गुज़र भी हो जाता है मौला तेरे करम से, अलमस्त लिए किस्मत पैदा हुआ हूं मैं।
वही धूल है, मिट्टी है वही, मैं भी वही हूं, गलत कहने वाले जानते हैं सही हूं, कहदे हवा को रंग दूं, पानी को जला दूं, ‘बांके’ तेरी खिदमत को ही पैदा हुआ हूं मैं।
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