Guest Writer : क्या जिक्र मैं करूं तेरा चांद चांदनी से, ऐ चांद कशिश़ में तेरी है चांदनी का ही दम

ऐ ख़्वाब मुझको सोने दे रातों को कम से कम, तेरे साथ चल पड़ूंगा उजाले में हर कदम।
ऐसे ना नोच पलके हैं दर्द इनमें काफी, आ घाव दिल के कुछतो मिलकर बांटलें हम।
क्या जिक्र मैं करूं तेरा चांद चांदनी से, ऐ चांद कशिश़ में तेरी है चांदनी का ही दम।
इजाजत ही नहीं है क्या हाल-ए-दिल कहूं , मैं मान कर जी रहा हूं तुझे होश का वहम।
इतना न ठहर मुझमें मुझे इश्क हो ही जाए, ‘बांके’ दे ही डालें किसी लब्ज़ की कसम।
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