Guest Writer : कुदरत का मैं हिसाब रखके करूंगा क्या, हर सूरत में है लाजबाव जिंदगी

कोई ख्वाहिश न थी तू तबभी थी जिंदगी, कीमती हर कीमत पे तू बेशक थी जिंदगी।
ख्वाबों ख्यालों में बिखरे किस्सों सी, सवाल ओ जवाब की थी समझ ही जिंदगी।
इक ईनाम की गऱज में भटकी शहर-2, शाम ओ सेहेर कभी दोपहर थी जिंदगी।
इम्तिहान ए इमानदारी हम देते रहे हमेशा, श़क ए वफादारी ही बन मिली ज़िन्दगी।
कुदरत का मैं हिसाब रखके करूंगा क्या, हर सूरत में है ‘बांके’ लाजबाव जिंदगी।
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