INDO-NEPAL : भितरघाती दोस्त चाइना की राह चला नेपाल
भारत की जमीन पर किया कब्जा, 30 पिलर गायब करने की बीएसएफ ने की शिकायत
Ajit Mishra
पटना। बुरे दिन आने के संकेत पर एक कहावत है कि चींटी के भी पर निकल आते हैं। नेपाल के लिये अब इससे बुरा क्या होगा जब वहां का नया निजाम किसी दूसरे देश की शह पर खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने को आमादा है।आज तक भारत नेपाल के संबंधों को रोटी बेटी का नाम दिया जाता रहा है लेकिन इन दिनों नेपाल की तरफ से भारत के लिये हर घिनौनी साजिश की जा रही है जिससे कि भारत तिलमिलाये। बताया जाता है कि नेपाल का माओवादी शासन अपनी सीमा लांघकर भारत की जमीन पर कब्जा करने का षड्यंत्र रच रहा है। यहां तक की कई जगह कब्जा करने की खबर भी आ रही है। भारत के 30 पिलर अचानक से गायब कर दिये गये हैं। बताया जाता है कि सीमा सुरक्षा बल ने स्थानीय जिलाधिकारी को इस सम्बंध में पत्र भी लिखा है। यह सीमा स्थान लखीमपुर खीरी से भारत नेपाल की सीमा से सटा हुआ है,जिसमें गौरिफन्टा, तिकुनीया सम्पूर्णानगर, ये सभी इलाके लखीमपुर खीरी जिले के अन्तर्गत आते हैं और नेपाल की सीमा से जुड़े हुए हैं, जहां कुछ जगह पर नेपाल की तरफ से नो मेन्स लैंड के कई पिलर गायब किए जा चुके हैं।इसकी खबर लगते ही सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों ने लखीमपुर खीरी के जिला अधिकारी को सूचना दी है।इसके बाद जिलाधिकारी ने इसकी जानकारी शासन को भेज दी है।
बताते हैं कि नेपाल की वर्तमान माओवादी सरकार फिलहाल लिपुलेख, कालापानी लिंपियाधुरा को नेपाली भू-भाग प्रदर्शित करने वाले एक नये नक्शे के संबंध में देश की संसद के निचले सदन से मंजूरी लेने में सफल रही है.नेपाल ने भारत को इसपर प्रतिक्रिया देने को बाध्य कर दिया हमें कहना पड़ा कि इस तरह के कृत्रिम क्षेत्र विस्तार का दावा स्वीकार्य नहीं है। इधर बीच नेपाली संसद में इस पर मतदान कराया जाना, दोनों देशों के बीच सात दशक पुराने सांस्कृतिक, राजनीतिक व्यापारिक संबंधों के अनुरूप नहीं हैं।यह क्षेत्रीय महाशक्ति भारत से टकराव मोल लेने की नेपाल की तैयारियों को प्रदर्शित करता है यह संकेत देता है कि उसे दोनों देशों के बीच पुराने संबंधों की परवाह नहीं है।और निश्चित तौर पर यह किसी भितरघाती के बहकावे में किया जा रहा है जो नेपाल के बड़ी आबादी के हित में कदापि नहीं है।हालांकि इस सम्बन्ध में जानकारों का कहना है कि दोनों पक्षों ने संबंधों को बहुत ही हल्के में लिया है भारत को भी काठमांडू से बात करने के लिये समय देना चाहिए था क्योंकि वह नवंबर से ही इस मुद्दे पर वार्ता के लिये जोर दे रहा है। हमने भी संवेदनशीलता की कमी प्रदर्शित की है अब डर है कि नेपाल इतना दूर न चला जाये कि उसे वापस वार्ता की मेज पर लाना मुश्किल हो जाय।सिर्फ यह सोचने से की नेपाल एक छोटा देश है और संसाधन स्तर पर उसे भारत पर निर्भर होना पड़ता है सिर्फ यह सोचनेभर से हीं काम चलनेवाला नहीं है।इसके पीछे कारण है कि कुटिल चाल के लिये कुख्यात एक देश उसे लपकने के लिये ललचायी नजरों से उसे देख रहा है।अगर तिब्बत की तरह नेपाल का भी हस्र हुआ तो भारत के लिए कुछ भी अच्छा नहीं होगा।फिलहाल हम कह सकते हैं नेपाल के कदम उसके लिये तो आत्मघाती तो हैं हीं लेकिन भारत के लिए भी सहज नहीं है।