तीर्थायन के रूप में काशी का बड़ा संकल्प : पुराणोक्त 1100 तीर्थस्थलों का काशी में करेंगे दर्शन, पाक्षिक होगी सांस्कृतिक यात्रा, 26 मंदिरों में काशीवासियों ने किया दर्शन-पूजन, जाना इतिहास और संदर्भ
Varanasi : ‘प्रयाग मुंडे, काशी ढूंढे, गया पिन्डे’ इस वाक्य का सनातन धर्म में बहुत महत्व है। मंदिरों के शहर काशी में पुराणोक्त तकरीबन 1100 से भी ज्यादा मंदिरों का उल्लेख है। लेकिन, उपरोक्त वाक्य के मुताबिकन उनको ढूंढ कर दर्शन करना होगा। जिसके लिए एक बड़े संकल्प और मार्गदर्शन की आवश्यकता है। तीर्थायन वही संकल्प है।
काशीकथा और अंतर राष्ट्रीय काशी घाटवॉक विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में काशी के 1100 लगभग काशी खंडोक्त मंदिर और देव दर्शन का संकल्प है। रविवार को हुई शुरुआत पर मार्गदर्शन के रूप में समाज-जीवन के हर विधा यथा संगीत, अभियांत्रिकी, साहित्य, कला, राजनीति, समाज सेवा, पत्रकारिता, इतिहास, धर्म दर्शन आदि के मूर्धन्य विद्वान और काशी के लोग तीर्थायन में मौजूद रहे।

सुबह 6.30 बजे काशीकथा न्यास की शोध परिकल्पना के तहत काशी के तीर्थों की परिक्रमा के अभियान तीर्थायन की शुरुआत की गई। तीर्थायन में काशी के युवा से लेकर प्रबुद्ध लोग शामिल हुए। यात्रा वाराणसी के अस्सी से शुरू होकर लोलार्क कुंड क्षेत्र में जाकर समाप्त हुई।
यात्रा के तहत आने वाले सभी 26 मंदिरों में भजन-कीर्तन के साथ लोगों ने दर्शन-पूजन किया। साथ ही सभी मंदिरों की मान्यता और इतिहास को भी जाना। सुबह से ही काशी की गलियां भक्ति-संगीत से गुंजयमान हो उठीं।

धार्मिक स्थलों को जानने-पहचानने की प्रक्रिया आरंभ हुई है
इस अवसर पर बोलते हुए पद्मश्री राजेश्वर आचार्य ने कहा कि भद्रवन की यह यात्रा काशी को नए सिरे से समझने का प्रयास है। काशी की भद्रता के पीछे इनके होने के महत्व पर विस्तार से अपनी बात रखी।
यह महज तीर्थाटन नहीं
प्रो. विजय नाथ मिश्र ने कहा कि यह महज तीर्थाटन नहीं है बल्कि इसके माध्यम से नई पीढ़ी को काशी की सांस्कृतिक विरासत से परिचित करवाना है।
सांस्कृतिक विरासत
प्रो. प्रदीप कुमार मिश्र ने कहा कि यह कार्यक्रम अपनी सांस्कृतिक विरासत को समझने से जुड़ा है।

सामासिक संस्कृति का अकूत वैभव
प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि काशी के ये तीर्थ महज आस्था व कर्मकांड के स्थान नहीं हैं। इनका वास्तु भी उतना ही खूबसूरत है और इनके पास सामासिक संस्कृति का अकूत वैभव भी है।
अच्छी पहल
इस दौरान ज्ञान प्रवाह के सह निदेशक डॉ. नीरज पांडेय ने कहा कि यह बहुत ही अच्छी पहल है। आज इस अभियान के माध्यम से काशी के धार्मिक स्थलों को जानने और पहचानने की प्रक्रिया आरंभ हुई है। इस यात्रा में प्रो. सिद्धनाथ उपाध्याय, प्रो. राणा पीवी सिंह ने संरक्षक के रूप में अपना आशीर्वचन दिया।
नई पीढ़ी इतिहास और मान्यता के बारे में जानेगी
अंत में काशी कथा के संयोजक सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. अवधेश दीक्षित ने आये हुए सभी अतिथियों के प्रति आभार जताया और कहा कि यह यात्रा अब हर दूसरे रविवार को (पाक्षिक) सम्पन्न होगी।
यह बहुत महत्वपूर्ण अवसर है। काशी में वह तीर्थस्थल जो गुमनाम हो रहे हैं, जिसके बारे में हमारी नई पीढ़ी को पता नहीं है इस यात्रा के माध्यम से हमारी नई पीढ़ी काशी के उन मंदिरों के इतिहास और उनकी मान्यता के बारे में जानेगी।

धरोहरों के प्रति लोगों ने संवेदनशीलता दिखी
करीब तीन घंटे चली इस यात्रा का सकारात्मक पक्ष यह रहा कि आध्यात्मिक उन्नयन के साथ इन धरोहरों के प्रति लोगों में संवेदनशीलता दिखी। निश्चित ही यह एक शुरुआत है और पाक्षिक रूप से हर दूसरे रविवार काशी के एक निश्चित परिक्षेत्र की होने वाली यह यात्रा काशी को नए रूप से देखने-समझने का विस्तार देगी।
सभी का समर्थन मिला
सम्मिलित सभी सदस्यों ने कहा कि यह इतनी भव्य और दिव्य यात्रा थी कि मन प्रसन्न हो गया। भगवान के भजन के साथ हम सभी मंदिरों की यात्रा पर निकले थे। सिर्फ एक संदेश पर युवा और प्रबुद्ध लोगों का बड़ा समर्थन मिला। लोगों ने मंदिरों में इतिहास और उसकी भव्यता को काफी करीब से महसूस किया। यह यात्रा ऐसे ही अनवरत चलती रहेगी। लोकेश्वर महादेव महादेव मंदिर, श्रीजगन्नाथ मंदिर, श्रीब्रह्मा जी पुष्कर कुंड, माया देवी मंदिर, श्रीकपिलेश्वर महादेव, श्रीतुलसी दास अखाड़ा, विनायक मंदिर, श्रीअर्कविनायक, रामहल्ला मंदिर, मां चर्ममुण्डा देवी सहित कुल 26 मंदिरों में दर्शन-पूजन किया।

इन लोगों की मौजूदगी रही
तीर्थायन में प्रमुख रूप से पद्मश्री डॉ. राजेश्वर आचार्य, प्रोफेसर सिद्धनाथ उपाध्याय, प्रोफेसर प्रदीप कुमार मिश्र, डॉ. विजयनाथ मिश्र, प्रोफेसर राणा पीवी सिंह, डॉ. अवधेश दीक्षित, रामानंद तिवारी, शैलेश कुमार तिवारी, उमाशंकर गुप्ता, विमल कुमार सिंह, शैलेंद्र किशोर पांडेय मधुकर, प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल, अजय शर्मा, जगन्नाथ ओझा ऋषि झींगरण, बलराम यादव, अरविंद मिश्र, अनुराग यादव अभिषेक यादव, अनुज चतुर्वेदी, महेश उपाध्याय, चक्रपाणि ओझा, शुभम तिवारी, चंद्रशेखर मिश्रा, रोशन पटेल, राधाकृष्ण गणेशन, डॉ. नीरज पांडेय, अंकित त्रिपाठी सहित 150 से अधिक लोग शामिल रहे।
