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भाक्क कटे बड़ी नख से : पतंगबाजी की होड़, मकर संक्रांति पर लोगों ने गंगा में लगाई पुण्य की डुबकी, पढ़िए मकर संक्रांति की मान्यता

Varanasi : काशी में आज मकर संक्रांति का पर्व पूरे श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। आज से सूर्य देव उत्तरायण हो रहे हैं। वहीं रात 3 बजकर 2 मिनट पर सूर्य के धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते ही मकर संक्रांति का पर्व शुरू हो गया। काशी के घाटों पर लाखों लोग भोर के 3 बजे से ही स्नान कार्य में जुटे हैं। वाराणसी में आए श्रद्धालु गंगा स्नान, दान-पुण्य करके तिल-गुड़, दही-चूड़ा और खिचड़ी का भोग लगा रहे हैं। बच्चों में पतंगबाजी की होड़ लगी है। मकर संक्रांति पर काशी के दशाश्वमेध, अस्सी, पंचगंगा, तुलसी, राजेंद्रप्रसाद, भैंसासुर घाट समेत सभी प्रमुख घाटों पर स्नान के लिए भीड़ लगी रही। केदारघाट और शंकराचार्य घाट पर दक्षिण भारतीय श्रद्धालुओं की भीड़ रही। स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने घाट पर ही जरूरतमंदों को दान कर पुण्य कमाया। इसके बाद बाबा के दरबार में भी श्रद्धालुओं की कतार लगी। श्रद्धालुओं ने बाबा विश्वनाथ के दरबार में दर्शन पूजन के बाद मां अन्नपूर्णा के मंदिर का रुख किया। मां अन्नपूर्णा की रसोई में प्रसाद ग्रहण करने के बाद गंतव्य के लिए रवाना हुए।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने बताया कि हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का सभी 12 संक्रांतियों में विशेष महत्व है। श्रीमद्भागवत गीता में भी मकर संक्रांति को बेहद शुभ बताया गया है। सूर्यदेवता से जुड़े कई त्‍योहारों को मनाने की परंपरा है। उन्‍हीं में से एक है मकर संक्राति। शीत ऋतु के पौस मास में जब भगवान भास्‍कर उत्‍तरायण होकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं, तो सूर्य की इस संक्रांति को मकर संक्राति के रूप में देश भर में मनाया जाता है। वैसे तो मकर संक्रांति हर साल 14 जनवरी को मनाई जाती है, लेकिन पिछले कुछ साल से गणनाओं में आए कुछ बदलाव की वजह से इसे 15 जनवरी को भी मनाया जाने लगा है।

ये है मान्यता

शास्‍त्रों के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन स्‍नान, ध्‍यान और दान सौ गुना होकर वापस लौटता है। भीष्म पितामाह ने देह त्याग के लिए मकर संक्रांति का ही दिन चुना था। इस दिन शुद्ध घी और कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। मकर संक्रांति की पौराणिक कथा श्रीमद्भागवत और देवी पुराण के मुताबिक, शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था, क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था। इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था।

इसलिए है मकर संक्रांति पर तिल का महत्व

कुंभ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था। इसलिए, उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया। कहा कि शनि का दूसरा घर मकर राशि में मेरे आने पर धन-धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य और शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।

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