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Lockdown : सुनिए सरकार! फीस माफी की दरकार, मध्यमवर्गीयों की चरमराई अर्थव्यवस्था

Gaurav Shukla

Varanasi : विश्वव्यापी कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए भारत मे 24 मार्च से प्रारम्भ हुए लॉकडाउन में 31 मई 2020 तक सभी शिक्षण संस्थानों को बंद रखने का आदेश सरकार द्वारा दिया गया है। साथ ही सरकार एवं प्रशासन द्वारा लॉकडाउन अवधि का फीस नहीं लिए जाने का बार-बार अनुरोध निजी शिक्षण संस्थान के प्रबंधकों से किया जा रहा है। लेकिन, शिक्षण संस्थान अपनी मनमानी पर उतारू हैं, अभिभावकों से फीस जमा करने के लिए संदेश दे रहे हैं। कोरोना संक्रमण के खतरे को देखते हुए देशभर में चौथे चरण का लॉकडाउन भी लागू कर दिया गया है। कुछ परिवहन सुविधाओं में 25 मई से रियायत दी गई है। भीड़भाड़ की संभावना वाली सभी जगहों मॉल, होटल, बाजार, सिनेमा हॉल, स्कूल और कॉलेज पूरी तरह से बंद हैं। दुनियाभर के अनुभव भी यही बताते हैं कि घर में कैद रहकर ही कोरोना को हराया जा सकता है। ऐसे माहौल में देश के लाखों परिवारों की आमदनी भी बंद हो गई है। प्रधानमंत्री अपील कर रहे हों कि किसी को भी नौकरी से नहीं निकाला जाए। कड़वी सच्चाई तो यही है कि लोगों की नौकरियां जा रही हैं और जिनकी बच भी रही हैं, उन्हें वेतन में कटौती का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में बच्चों की शिक्षा के सामने एक भयावह संकट खड़ा हो गया है।

प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में प्रधानमंत्री के आग्रह की अनदेखी

सर्वविदित है, देश का लगभग हर अभिवावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाना चाहता है। प्राइवेट स्कूलों का आलम तो यह है कि वो हर कीमत पर बच्चों की पढ़ाई के नाम पर उनके अभिभावकों की जेबें ढीली करता रहता है। शिक्षा का स्तर भले ही जो हो लेकिन प्राइवेट स्कूल कॉपी और किताबें महंगें दामों पर बेचते हैं। ड्रेस बेचने पर रोक लगाई गई तो इन्होंने इस बात की पुख्ता व्यवस्था कर दी कि बाहर भी अभिभावक एक ही दुकान से ड्रेस लें जो बाजार से कई गुणा ज्यादा महंगा होता ही है। दुर्भाग्यजनक स्थिति तो यह है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन के संकट के समय पर भी ये स्कूल अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रहे हैं। वाराणसी जनपद के हर क्षेत्र से एक ही तरह की खबरें आ रही हैं कि स्कूलवालों ने फीस बढ़ा दी है, साथ ही अभिभावकों पर अप्रैल-मई-जून यानि तीन महीनों की फीस एक साथ जमा करने का दबाव बनाया जा रहा है। स्कूल बंद होने के बावजूद वार्षिक शुल्क, विकास शुल्क जैसे कई शुल्क वसूलना स्कूल अपना अधिकार मान रहे हैं। जबकि पढ़ाई केवल ऑनलाइन ही हो रही है। ऐसे कठिन और नाजुक दौर में यह जरूरी है कि स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने और अभिभावकों को राहत देने के लिए जिला प्रशासन सामने आए। राज्य में कई जिलों में स्कूल फीस माफी के निर्देशों का सख्ती से पालन कराया गया, यहां तक कि कितने ही स्कूल प्रबंधन ने स्वेच्छा से फीस माफ कर दिया। शायद प्राइवेट स्कूल वाले मानवता जैसी किसी चीज से मुखातिब ही नहीं हैं। इतना ही नहीं लाकडाउन में फीस पूरी लेंगे लेकिन उसी लॉकडाउन के नाम पर ऑनलाइन पढ़ाने वाले शिक्षकों की तनख्वाह से मोटी रकम भी काट लेंगे। एक तरफ लॉकडाउन से बिना परहेज के फीस भी लेगे दूसरी तरफ उसी लॉकडाउन की आड़ में अपने कर्मचारी की जेब भी काटेंगे।

आर्थिक संकट

शिवपुर के रहने वाले विवेक कुमार सिंह का कहना है कि स्कूल संचालकों ने शिक्षा को कमाई का जरिया बना लिया है। महंगाई के दौर में अपना पेट काटकर बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में अभिभावक जुटे हुए हैं। ऐसे में अनेक अभिभावकों को बहुत आर्थिक संकटों से जूझना पड़ता है।

फीस में बढ़ोतरी हो जाती है

करौंदी के रहने वाले पंकज मिश्रा का कहना है कि हर वर्ष स्कूलों में नई कक्षा में जाने पर बच्चों के एडमिशन फीस में बढ़ोतरी हो जाती है। जबकि एक ही विद्यालय में सालों से पढ़ रहे बच्चे से प्रवेश शुल्क नहीं वसूला जाना चाहिए। 

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