टिड्डियों का आतंक : अन्नदाता ने कहा ‘किरौना’ भी आ गयल!
डेजर्ट हॉपर प्रजाति के टिड्डी दल से सतर्क रहने की जरूरत
Jiva Tiwari
Varanasi : कृषि प्रधान देश में खून-पसीना बहाकर इंसान का पेट भरने वाला अन्नदाता किसान कभी खाद-बीज व बिजली-पानी का संकट झेलता है तो कभी प्रकृति के कोप का शिकार हो जाता है। कोरोना महामारी का दंश झेल रहे किसानों की फसलों पर अब राजस्थान से आ रहे टिड्डियों के दल का खतरा मंडराने लगा है। किसान चिंतित व परेशान हो उठा है। किसानों का कहना है कि कोरोना वायरस के चलते हमलोग आर्थिक तंगी झेल रहे थे, ‘किरौना’ (टिड्डी) भी आ गयल!
कृषि वैज्ञानिक ने दिए टिप्स
मिर्जामुराद के कल्लीपुर में स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष व वरिष्ठ वैज्ञानिक ड़ॉ. संजीत कुमार ने बताया कि लॉकडाउन में फिलहाल किसानों से मोबाइल पर सम्पर्क कर टिड्डियों से सतर्क करने व फसलों को बचाने के सुझाव दिए जा रहे हैं। दवा के छिडकांव आदि के लिए कोई प्रावधान व फंड नहीं है, न ही कोई निर्देश मिला है। कृषि वैज्ञानिक ने किसानों को सावधान करते हुए बताया कि टिड्डी दल का अगला पड़ाव आपका खेत भी हो सकता है। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों ने इसकी पहचान ‘डेजर्ट हॉपर’ प्रजाति की टिड्डियों के तौर पर की है। उनको चमकीले पीले रंग और पिछले लंबे पैरों से पहचाना जा सकता है। टिड्डी जब अकेली होती है तो उतनी खतरनाक नहीं होती है, लेकिन झुंड में रहने पर इनका रवैया बेहद आक्रामक हो जाता है। फसलों को एकबारगी सफाया कर देती हैं। आपको दूर से ऐसा लगेगा मानो आपकी फसलों के ऊपर किसी ने एक बड़ी-सी चादर बिछा दी हो। टिड्डियों ने कुछ समय पहले अफ्रीकी देशों में फसलों को काफी नुकसान पहुंचाया हैं। हैरत की बात यह है कि ये फूल, फल, पत्ते, बीज, पेड़ की छाल और अंकुर सब कुछ खा जाती हैं। हर एक टिड्डी अपने वजन के बराबर खाना खाती है। इस तरह से एक टिड्डी दल, 2500 से 3000 लोगों का भोजन चट कर जाता है। टिड्डियों का जीवन काल अमूमन 40 से 85 दिनों का होता है।
नियंत्रण के उपाय
टिड्डियां जहां भी पेड़ों की पतियों पर बैठ जाती हैं उसकी खबर भारत सरकार की लोकस्ट टीम तक पहुंचाई जाती है। जिससे सुबह के समय टिड्डियों के ऊपर दवा का छिड़काव किया जा सके। किसान भाई टिड्डी दल से बचने के लिए कई उपाय अपना सकते हैं। फसल के अलावा, टिड्डी कीट जहां इकट्ठा हो, वहां उसे फ्लेमथ्रोअर से जला दें। टिड्डी दल को भगाने के लिए थालियां, ढोल, नगाड़़े, लाउडास्पीकर या दूसरी चीजों के माध्यम से शोरगुल मचाएं। जिससे वे आवाज सुनकर खेत से भाग जाएं और अपने इरादों में कामयाब ना होने पाएं। टिड्डों ने जिस स्थान पर अपने अंडे दिये हों, वहां 25 कि.ग्रा 5 प्रतिशत मेलाथियोन या 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस को मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़कांव कर दें। टिड्डी दल के खेत की फसल पर बैठने पर उनके उपर 1.5 प्रतिशत क्विनाल्फोस का छिड़काव करें। कीट की रोकथाम के लिए 50 प्रतिशत ई.सी फेनीट्रोथीयोन या 20 प्रतिशत ई.सी. क्लोरपाइरिफोस 1 लीटर दवा को 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव करें। टिड्डी दल सुबह 10 बजे के बाद ही अपना डेरा बदलता है। इसलिए इसे आगे बढ़ने से रोकने के लिए 5 प्रतिशत मेलाथियोन या 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस का छिड़काव करें। 40 मिली नीम के तेल को 10 ग्राम कपड़े धोने के पाउडर के साथ या फिर 20-40 मिली नीम से तैयार कीटनाशक को 100 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से टिड्डी फसलों को नहीं खा पाएगा। फसल कट जाने के बाद खेत की गहरी जुताई करें। इससे इनके अंडे नष्ट हो जाते हैं, सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है जब तक कृषि विभाग का टिड्डी उन्मूलन विभाग, टिड्डी दल प्रभावित स्थल पर पहुंचता है, तब तक ये अपना ठिकाना बदल चुका होता है।ऐेसे में टिड्डी दल से संबंधित पर्याप्त जानकारी और उससे संबंधित रोकथाम के उपायों को अमल में लाना ही एक मात्र विकल्प है।
किसानों को बांटा गया धान का बीज
कृषि विज्ञान केंद्र से 25 प्रगतिशील किसानों को निःशुल्क धान की बीज का वितरण किया गया। बीज वितरण में डॉ. संजीत कुमार, डॉ. एन.के. सिंह, डॉ. एमबी सिंह, डॉ. एके सिंह, डॉ. विनोद सिंह, डॉ. नरेंद्र प्रताप सहित अन्य उपस्थित थें।
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