350 साल से ज्यादा पुरानी परंपरा : मुक्ति की कामना से कला का प्रदर्शन, धधकती चिताओं के बीच नगरवधुओं ने बाबा महाश्मशान नाथ को दी भावपूर्ण नृत्यांजलि
Varanasi : चैत्र नवरात्र की सप्तमी पर शुक्रवार की रात धधकती चिताओं के बीच मणिकर्णिकाघाट पर महाश्मशान नाथ के श्रृंगार महोत्सव की अंतिम निशा में नगरवधुओं का नृत्य हुआ।
बाबा महाश्मशान नाथ के सामने नगरवधुओं ने मुक्ति की कामना के लिए अपनी कला का प्रदर्शन किया। कोरोना संक्रमण के नाते पिछले साल बाबा महाश्मशान नाथ के इस उत्सव से आम श्रद्धालुओं को दूर रहने की अपील की गई थी, लेकिन इस बार आयोजन भव्य स्वरूप में हुआ।




बाबा महाश्मशान नाथ के तीन दिवसीय श्रृंगार महोत्सव के दूसरे दिन गुरुवार को भव्य श्रृंगार हुआ था। देर शाम को बाबा महाश्मशान नाथ का शिवशक्ति के स्वरूप में श्रृंगार किया गया था। आयोजित भंडारे में श्रद्धालुओं ने बाबा का प्रसाद ग्रहण किया।
साढ़े तीन सौ साल से ज्यादा की परंपरा के तहत शुक्रवार की रात नगरवधुओं ने बाबा महाश्मशान नाथ के दरबार में नृत्य की नृत्यांजलि प्रस्तुत की। रात में आयोजन शुरू हुआ।
इस तरह हुई थी शुरुआत
दरअसल, राजा मानसिंह ने प्राचीन नगरी काशी में भगवान शिव के मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था। इस मौके पर राजा मानसिंह एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कराना चाह रहे थे, लेकिन कोई भी कलाकार श्मशान में आने और अपनी कला के प्रदर्शन के लिए तैयार नहीं हुआ।
इसकी जानकारी काशी की नगरवधुओं को हुई तो वे स्वयं ही श्मशान घाट पर होने वाले उत्सव में नृत्य करने को तैयार हो गईं। इस दिन से धीरे-धीरे यह उत्सवधर्मी काशी की परंपरा का हिस्सा बन गई। तब से आजतक चैत्र नवरात्रि की सातवीं निशा में हर साल यहां श्मशानघाट पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।
