पालकी पर सवार होकर मां गौरा पहुंची ससुराल : गौना कराकर विश्वनाथ धाम लौटे काशी पुराधिपति, काशी वासियों ने जमकर खेले रंग-गुलाल
Varanasi : रंगभीर एकादशी पर काशीवासी अद्भुत क्षटा के साक्षी बनें। रंगभरी एकादशी के मौके पर औघड़दानी बाबा विश्वनाथ और मां गौरा का गौना कराकर ससुराल ले गए। गौना बारात के साथ काशी में रंगोत्सव का आरंभ हो गया। सबसे पहले महंत आवास पहुंचने पर बाबा की बारात का स्वागत फल, मेवा और ‘रंगभरी ठंडई’ से पारंपरिक स्वागत किया गया। दीक्षित मंत्रों से बाबा का अभिषेक करने के बाद वैदिक सूक्तों का घनपाठ हुआ। उसके बाद बाबा विश्वनाथ व माता पार्वती की गोदी में प्रथम पूज्य गणेश की रजत प्रतिमाओं को एक साथ सिंहासन पर विराजमान कराया गया. पारंपरिक गीत लोकनृत्य और गौने के बधाई गीतों से इलाका गुंजायमान हो उठा। इस अवसर पर श्रीकाशी विश्वनाथ महाकाल डमरू सेवा समिति के सदस्यों ने डमरुओं की गर्जना की. बाबा के साथ माता गौरा की चल प्रतिमा का पंचगव्य तथा पंचामृत स्नान के बाद दुग्धाभिषेक किया गया।

इस अद्भुत अवसर पर महंत आवास से लेकर मंदिर परिसर तक भव्य शोभायात्रा निकाली गई। गाना बजाकर नाचकर जश्न मनाया गया। पालकी में सवार मां गौरा और बाबा विश्वनाथ की प्रतिमाओं के भक्तों ने दर्शन किए। काशी की गलियों में मथुरा से आए अबीर और गुलाल की होली खेली गई। हर-हर महादेव के जयघोष से गलियां गूंज उठीं।

महादेव की पंचबदन रजत चल प्रतिमा को हर श्रद्धालु रंग लगाने को आतुर दिखा। इसी के साथ भोले की नगरी में 4 दिवसीय होली उत्सव की शुरुआत हो गयी। बाबा विश्वनाथ की इस अध्भुत छटा देखने के लिए महंत आवास टेढ़ी नीम से विश्वनाथ धाम तक लोगों का सैलाब उमड़ पड़ा। काशी विश्वनाथ मंदिर के अर्चक पंडित श्रीकांत महराज ने बताया कि फाल्गुन शुक्ल-एकादशी को रंगभरी एकादशी कहा जाता है। इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष शृंगार होता है और काशी में होली का पर्वकाल शुरू हो जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के बाद पहली बार काशी नगरी आये थे।

