शारदीय नवरात्रि की नवमी : कन्या पूजन कर लिया आशीर्वाद, देवी सिद्धिदात्री और महालक्ष्मी गौरी के दरबार में भक्तों ने नवाया शीश
Varanasi : शारदीय नवरात्रि के नवमी पर माता भगवती के नौवें स्वरूप देवी सिद्धिदात्री का पूजन होता है। यह देवी महालक्ष्मी का स्वरूप हैं। इनकी आराधना के साथ ही नवरात्रि व्रत का पारायण होता है। नवरात्रि की नवमी तिथि को काशी में देवी भगवती के भक्त लक्ष्मीकुंड में महालक्ष्मी गौरी का दर्शन-पूजन करते हैं। इसके साथ ही शक्ति के उपासक इस दिन देवी सिद्धिदात्री का दर्शन-पूजन मैदागिन गोलघर स्थित मंदिर में करते हैं। देवी सिद्धिदात्री की पूजा के साथ कन्या पूजन और यज्ञ से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
नौ दिन के दर्शन का फल मिलता है
देवी सिद्धिदात्री मंदिर के पुजारी पंडित बच्चालाल मिश्र ने बताया कि मां की उपासना का मंत्र ‘या देवि सर्वभूतेषु लक्ष्मी रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:…’ है। जो भक्त नवरात्रि के अन्य दिनों में माता भगवती का दर्शन-पूजन नहीं कर पाते हैं, वह देवी सिद्धिदात्री की आराधना कर सभी नौ दिनों के दर्शन का फल प्राप्त कर सकते हैं। मां सिद्धिदात्री को कार्य और मनोकामना सिद्ध करने की देवी माना जाता है। यहां मां को नारियल बलि के रूप में चढ़ाने का विशेष महत्व है। मां को चुनरी के साथ लाल गुड़हल की माला अर्पित की जाती है और मिष्ठान का भोग लगाया जाता है।
कन्या पूजन से विशेष फल मिलता है
पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महानवमी को कन्या पूजन विशेष फलदायी होता है। श्रद्धालु अपनी सामर्थ्य के अनुसार कन्याओं की पूजा कर उन्हें भोज करा कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
कन्या पूजन का महत्व
छोटी बच्चियों को माता रानी का रूप माना है। ऐसे में नवरात्रि में उनकी पूजा करने से देवी मां काफी प्रसन्न होती है। इसके साथ ये भी मान्यता है कि कन्याओं को भोजन कराने से विवाहित महिलाओं की सूनी गोद भर जाती है यानी कि उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कन्याओं के रूप में मां दुर्गा स्वंय अपने अलग-अलग रूपों में कन्या पूजन के लिए आती हैं। अगर आप भी मां भगवती से अपनी हर मुराद पूरी करवाना चाहते हैं तो कन्या पूजन जरूर करें। कन्या पूजन को हम बेटियों के सम्मान के रूप में भी देख सकते हैं।
ऐसा है माता का स्वरूप
देवी भागवत पुराण के अनुसार, महालक्ष्मी की तरह मां सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान रहती हैं और इनके चार हाथ हैं। जिनमें वह शंख, गदा, कमल का फूल तथा चक्र धारण किए रहती हैं। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं।
भगवान शिव ने इनके लिए की थी तपस्या
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने भी इन्हीं देवी की कठिन तपस्या कर इनसे आठों सिद्धियों को प्राप्त किया था। साथ ही मां सिद्धिदात्री की कृपा से महादेव का आधा शरीर देवी की हो गई थी और वह अर्धनारीश्वर कहलाए। नवरात्र के नौवें दिन इनकी पूजा के बाद ही नवरात्र का समापन माना जाता है। नवें दिन सिद्धिदात्री की पूजा करने के लिए नवाहन का प्रसाद और नवरस युक्त भोजन और नौ प्रकार के फल फूल आदि का अर्पण करके नवरात्र का समापन करना चाहिए।
इन उपायों से प्रसन्न होंगी माता रानी
नवरात्रि में सच्चे मन से मां की आराधना करने से घर से नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं। घर के मुख्य दरवाजे पर कुमकुम से माता के चरण बनाएं। ऐसा करने से माता की कृपा मिलती है। नौवें दिन कन्याओं को कराकर दक्षिणा देने से देवी मां प्रसन्न होती हैं। घी का दीपक देवी के दाहिने हाथ और तिल के तेल का दीपक देवी के बाएं हाथ की तरफ रखें। ऐसा करने से घर में बरकत होती है।






