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NGT ने गंगा में नहर खोदाई पर सिंचाई विभाग को माना दोषी : पीठ ने कहा – भविष्य में ऐसी गलती पर माफी नहीं, नियम को ताख पर रख कर किया गया काम

Varanasi : गंगा घाटों पर पानी का दबाव कम करने के दावे के साथ दो साल पहले अस्सी से राजघाट के समानांतर नहर की खोदाई पर सिंचाई विभाग को दोषी माना गया है। NGT की सख्ती के बाद सिंचाई विभाग ने अपनी गलती मान ली है और इसे जानकारी का अभाव बताया है। मामला फरवरी 2021 में वाराणसी में गंगा उसपर रेती पर अस्सी और राजघाट गंगा घाट पर पानी का दबाव कम करने के लिए खोदी गयी नहर से जुड़ा है। इस मामले में NGT पीठ ने सख्ती दिखाते हुए दो टूक कहा कि आगे ऐसी किसी भी गलती की माफी नहीं मिलेगी और पीठ ने नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (एनएमसीजी) को महीने भर में देश की सभी नदियों में ड्रेजिंग (खुदाई) नियमावली बनाने का निर्देश दिया है। 

गौरतलब है कि, बाढ़ के समय गंगा में समाहित हुई 5.5 किलोमीटर लंबी और 45 मीटर चौड़ी व सात मीटर गहरी नहर पर NGT में अधिवक्ता सौरभ श्रीवास्तव ने एप्लिकेशन डाली थी। इसपर चली लम्बी सुनवाई के बाद NGT की चार सदस्यीय पीठ के जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता में जस्टिस सुधीर अग्रवाल, जस्टिस अरुण कुमार त्यागी और डॉ. ऐ सेंथिल वेल ने कहा कि ये बड़े ही चौकाने वाले तथ्य हैं कि गंगा में नहर बनाने के लिए सभी नियमों को ताख पर रख दिया गया। NGT की खंडपीठ ने कहा कि गंगा में नहर खोदने और ड्रेजिंग से निकले बालू को बेचने के लिए किसी भी प्रकार की अनुमति नहीं ली गयी, जबकि एनएमसीजी से इसकी अनुमति लेना आवश्यक है। गंगा की ड्रेजिंग से निकले बालू का इस्तेमाल सिर्फ सरकारी  कार्यों जैसे तटबंध बनाने और कटान रोकने के लिए ही किया जा सकता है। 

NGT की खंडपीठ के सामने सिंचाई विभाग के अफसरों ने रविवार को अपनी गलती मान ली। NGT के सामने उपस्थित हुए सिंचाई विभाग के सचिव के अधिवक्ता ने NGT को बताया कि हमने यह जानबूझकर नहीं किया।  हमारे विभाग को इस बात की जानकारी नहीं थी कि गंगा में ड्रेजिंग के पहले एनएमसीजी से अनुमति लेनी होगी। हमें यह भी नहीं पता था कि ड्रेजिंग का माल बेचना नियमविरुद्ध है। सिंचाई विभाग की सफाई पर एनजीटी ने सभी को सख्ती के साथ फटकार लगाते हुए भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने की चेतावनी दी। वहीँ एनजीटी ने एनएमसीजी को महीने भर के अंदर सभी नदियों में ड्रेजिंग को लेकर नियमावली तैयार करने का निर्देश भी दिया। 

नदी वैज्ञानिकों ने उठाये थे सवाल 

आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर और संकटमोचन मंदिर के महंत प्रोफेसर विश्वम्भर नाथ मिश्रा और नदी वैज्ञानिक डॉ बीड़ी त्रिपाठी ने इस ड्रेजिंग को गंगा और गंगा के घाटों के लिए खतरनाक बताया था। इसपर सोशल मीडिया पर लगातार पोस्ट भी की गयी थी, जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने इस सम्बन्ध में भ्रम की स्थिति न पैदा करते हुए सोशल मीडिया की जगह लिखित शिकायत करने को कहा था। इन दोनों ही जानकारों ने पहले ही आशंका जताई थी कि नदी का जलस्तर बढ़ते ही इस नहर का अस्तित्व खत्म हो जाएगा।  

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