Varanasi धर्म-कर्म 

निर्जला एकादशी : निर्जल रहकर व्रत करने की परंपरा का पर्व, पढ़ें पौराणिक कथा

स्कंद पुराण के अनुसार निर्जला एकादशी व्रत करने से होता है पापों का शमन

महर्षि वेदव्यास ने भीम को बताया था निर्जला एकादशी का महात्म्य

Sandeep Tripathi

Varanasi : हिंदू पंचांग के अनुसार साल में 24 एकादशियां आती हैं। सभी एकादशियों पर हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भगवान विष्णु की पूजा करते हैं व उपवास रखते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने, पूजा और दान करने से व्रती जीवन में सुख-समृद्धि का भोग करते हैं। इन सभी एकादशियों में एक ऐसी एकादशी भी है जिसमें बिना पानी और अन्न के व्रत रखने से सालभर की एकादशियों जितना पुण्य मिल सकता है। जिसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस व्रत का महत्व पद्म पुराण और स्कंद पुराण में बताया गया है। ये व्रत ज्येष्ठ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को किया जाता है। मंगलवार और एकादशी के योग में भगवान विष्णु के साथ ही हनुमानजी की भी पूजा का भी दिन होने से पर्व की महानता और बढ़ गई है।

व्रत का मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ – दोपहर 02:57 (01 जून 2020)
एकादशी तिथि समाप्त – दोपहर 12:04 (02 जून 2020)

व्रत का पारण

व्रत की समापन क्रिया को पारण कहा जाता है। एकादशी के व्रत में पारण का विशेष महत्व है। इसका बहुत ही ध्यान रखना होता है।एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले पहले कर देना चाहिए। तभी इस व्रत का पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। वहीं द्वादशी तिथि के अंर्तगत पारण न करना बहुत ही गलत माना गया है।

पारण का समय :- सुबह 05:23 से 08:8 तक (03 जून 2020)

घर में सुख समृद्धि आती है

यह व्रत घर में सुख समृद्धि लेकर आता है। परिवार के मुखिया पर यदि कोई बाधा है या फिर आर्थिक दृष्टि से कोई परेशानी बनी हुई है। शत्रु निरंतर नुकसान पहुंचाते रहते हैं तो ऐसे लोगों के लिए यह व्रत बहुत ही फलदायी माना गया है।

निर्जला एकादशी का दान

इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करके व्रत कथा सुनी जाती है। इसके बाद श्रद्धा के अनुसार दान करने का संकल्प भी लिया जाता है। इस व्रत में जल दान करने का विशेष महत्व होता है। भगवान विष्णु का अभिषेक किया जाता है। जरूरतमंद लोगों को या मंदिर में तिल, वस्त्र, धन, फल और मिठाई का दान करना चाहिए। स्कंद पुराण और महाभारत के अनुसार निर्जला एकादशी पर पूरे दिन ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का मानसिक जाप करते रहना चाहिए। द्वादशी के दिन व्रत का पारण किया जाता है। इसमें ब्राह्मणों और जरूरतमंद लोगों को दान करके व्रत खोला जाता है। इस दिन व्रत करने के अलावा जप, तप गंगा स्नान आदि कार्य भी किए जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन जल, कलश, जूता, पंखा, जौ, सत्तू आदि का दान अच्छा माना गया है। इस दिन जरुरतमंदों को जल से भरा घड़ा देना बहुत ही शुभ माना गया है।

ऐसे पूर्ण करें व्रत

निर्जला एकादशी का व्रत कठिन व्रत है। ऐसे में इससे विशेष सावधानी के साथ रखना चाहिए. इस व्रत में जल और अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। ज्येष्ठ यानि गर्मी के महीने में दिन भी बड़ा होता है ऐसे में भगवान का ध्यान लगाना चाहिए. एकांत में बैठकर ध्यान लगाने की कोशिश करनी चाहिए। घर में शांति का माहौल रहना चाहिए।

निर्जला एकादशी कथा

भीमसेन व्यासजी से कहने लगे कि हे पितामह! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता। इस पर व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यदि तुम नरक को बुरा और स्वर्ग को अच्छा समझते हो तो प्रति मास की दोनों एक‍ा‍दशियों को अन्न मत खाया करो। भीम कहने लगे कि हे पितामह! मैं तो पहले ही कह चुका हूँ कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। यदि वर्षभर में कोई एक ही व्रत हो तो वह मैं रख सकता हूँ, क्योंकि मेरे पेट में वृक नाम वाली अग्नि है सो मैं भोजन किए बिना नहीं रह सकता। भोजन करने से वह शांत रहती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय भी बिना भोजन किए रहना कठिन है। अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार ही करना पड़े और मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए। श्री व्यासजी कहने लगे कि हे पुत्र! बड़े-बड़े ऋषियों ने बहुत शास्त्र आदि बनाए हैं जिनसे बिना धन के थोड़े परिश्रम से ही स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। इसी प्रकार शास्त्रों में दोनों पक्षों की एका‍दशी का व्रत मुक्ति के लिए रखा जाता है। व्यासजी के वचन सुनकर भीमसेन नरक में जाने के नाम से भयभीत हो गए और काँपकर कहने लगे कि अब क्या करूँ? मास में दो व्रत तो मैं कर नहीं सकता, हाँ वर्ष में एक व्रत करने का प्रयत्न अवश्य कर सकता हूँ। अत: वर्ष में एक दिन व्रत करने से यदि मेरी मुक्ति हो जाए तो ऐसा कोई व्रत बताइए। यह सुनकर व्यासजी कहने लगे कि वृषभ और मिथुन की संक्रां‍‍ति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में छ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि एकादशी को सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करे तो उसे सारी एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है। द्वादशी को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि करके ब्राह्मणों का दान आदि देना चाहिए। इसके पश्चात भूखे और सत्पात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर फिर आप भोजन कर लेना चाहिए। इसका फल पूरे एक वर्ष की संपूर्ण एकादशियों के बराबर होता है।

व्यासजी कहने लगे कि हे भीमसेन! यह मुझको स्वयं भगवान ने बताया है। इस एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दानों से अधिक है। केवल एक दिन मनुष्य निर्जल रहने से पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करते हैं उनकी मृत्यु के समय यमदूत आकर नहीं घेरते वरन भगवान के पार्षद उसे पुष्पक विमान में बिठाकर स्वर्ग को ले जाते हैं। अत: संसार में सबसे श्रेष्ठ निर्जला एकादशी का व्रत है। इसलिए यत्न के साथ इस व्रत को करना चाहिए। उस दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और गौदान करना चाहिए। इस प्रकार व्यासजी की आज्ञानुसार भीमसेन ने इस व्रत को किया। इसलिए इस एकादशी को भीमसेनी या पांडव एकादशी भी कहते हैं। निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ। इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता। इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, ‍वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं। जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है। हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए। निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

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