लोगों के ताने से बाहर से आने वालों के साथ हैरत में परिवार के लोग
Jiva Tiwari
Varanasi : फिल्म ‘जब-जब फूल खिले’ की गीत ‘परदेशियों से न अखियां मिलाना’ के बोल इस समय गांवों में चरितार्थ हो रहे हैं। परदेशी बाबुओं के गांव में आते ही पड़ोसियों में कानाफुंसी शुरू हो जा रही। परिवारवालों को बात-बात में ताने भी मारे जा रहे हैं। एक समय था जब बेटा परदेश से कमाई कर घर आता था तो परिवार के साथ-साथ गांव में खुशी छा जाती थी, पर आज वाह रे कोरोना! क्या से क्या कर दिया।एक दम उल्टा समय आ गया है।
रास्ता बदल ले रहे लोग
हालचाल पूछने की बजाय देखते ही मुंह छिपा कर रास्ता बदल लें रहे हैं लोग। रिश्तेदार अगर आने के लिए फोन कर रहे है तो उन्हें मना कर दिया जा रहा है। मजबूरन अपने ही गांव में बेगाने बने प्रवासी एकांतवास में समय काट रहे हैं। होम क्वॉरेंटाइन पूरा कर लेने के बाद भी घर से बाहर निकलने पर उन्हें ‘आतंकवादी’ जैसी नजरों से देखा जा रहा।प्रवासी भी गांव आकर परेशान हैं।
कमाने के लिए घर छोड़ कर गए
देश में फैले वैश्विक महामारी में लॉकडाउन के चलते मुम्बई, दिल्ली, गुजरात सहित विभिन्न प्रान्तों में रोटी कमाने के लिए घर-परिवार छोड़ कर गए ग्रामीण आज कम्पनियों पर ताले लटक जाने के बाद रोजगार छीन जाने के कारण मजबूर हो गांव की ओर लौट रहे हैं। समय का चक्र आज उल्टा है। इन परदेशियों के लौटने से परिवार में खुशी आने की बजाय कोरोना संक्रमण का भय बन जा रहा। परिवार में खुशी न छाने की साफ वजह है कि जिसका रोजगार ही रुक जाए तो पेट कैसे भरेगा? जिस परिवार का पेट भरने के लिए बेचारा श्रमिक घर छोड़ हजारों किलोमीटर दूर परदेश का शरण लिया था, आज मायूस होकर वापस लौट आया।जब कमाने वाला ही घर आ जाए तो साफ अन्दाजा लगाया जा सकता है कि परिवार पर क्या गुजरती होगी। परदेशी बाबुओं के साथ इस समय गांव-परिवार में कोई मानवता या सहानभूति नहीं दिखाया जा रहा है। इसी बीच प्रवासी को कही अगर छींक आ गई तो पुलिस और एम्बुलेंस को भी घर पर आते देर नहीं लग रही है।