रामनगर की रामलीला : आनंद रहो प्यारे दुलहे, सातवें दिन जनकपुर से बरात विदाई, अयोध्या में परिछन और शयन की झांकी
Sanjay Pandey
Varanasi : जनकपुर से युवराजों संग वधुओं के आगमन के समाचार से अयोध्यावासी निहाल हो गए। बरात द्वार पर पहुंचने के साथ राजपरिवार की महिलाओं के साथ माताओं ने श्रीराम-सीता समेत चारों युवराजों व बहुओं का परिछन किया। इस भव्य दृश्यावली ने श्रद्धालुओं को विभोर किया और लीला क्षेत्र जयकार से गूंज उठा।
रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के सातवें दिन गुरुवार को जनकपुर से बरात विदाई, अयोध्या में परिछन व शयन की झांकी का मंचन किया गया। राजा जनक का आदेश पाकर राजपुरोहित सदानंद जेवनार की रस्म के लिए महाराजा दशरथ व युवराजों समेत बरातियों को आमंत्रित करते हैं।
इसके साथ ही ‘खालो खालो खिचडी मेरे प्यारे..’, ‘रघुवर सुनिए मधुर स्वर की गारिया..’, ‘आनंद रहो प्यारे दुलहे..’ जैसी पारंपरिक गारियों व गीतों को स्वर देकर महिलाएं आनंदित होती हैं। न्योछावर देकर महाराज दशरथ लोकाचार पूर्ण करते हैं। जनवासे मे कामदेव, नारद वाल्मिकी, जाबालि, विश्वामित्र समेत ब्राम्हणों को गऊ दान किया जाता है। महाराज दशरथ राजा जनक से अयोध्या वापसी की आज्ञा मांगते हैं।
राजा जनक लाखों गाय, हाथी-घोड़ा के साथ दान दहेज का पूरा साज-ओ-समान देकर उन्हें विदा करते हैं। माता सुनयना पुत्रियों को सास श्वसुर की सेवकाई करने, पति का रूख देख उनकी आज्ञा में रहने आदि की सीख देती हैं। अयोध्या पहुंचने पर रीति रिवाज पूर्वक बहुओं का परिछन कर गृह प्रवेश कराया जाता है।
महारानियां पुत्र वधुओं को महल में सुंदर सिंहासन पर बैठाती हैं और पूजन करती हैं। उधर, प्रभु श्रीराम ताड़का समेत जंगल मे राक्षसों के वध, अहिल्या तारण व धनुष भंग की कथा सुनाते हैं और इसे माताओं की कृपा का फल बताते हैं।
महाराजा दशरथ विश्वामित्र को दंडवत कर पुत्रों पर स्नेह बनाए रखने की कामना के साथ विदा करते हैं। प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण, भरत-शत्रुघ्न उन्हें अयोध्या की सीमा से बाहर छोड़कर आते हैं। गुरु वशिष्ठ, राजा दशरथ के साथ ही श्रीराम-लक्ष्मण, भरत-शत्रुघ्न की उनकी पत्नियों के साथ महारानी कौशल्या आरती उतारती हैं। इसके साथ लीला को विश्राम दिया जाता है।

























