रामनगर की रामलीला : परंपरा के पथ पर विनम्र के नन्हे पांव, पीछे के कारण की खोज है रोचक
Varanasi : उम्र सात साल, कक्षा प्रथम, नाम विनम्र दीक्षित। स्वभाव से अत्यन्त शर्मीले किंतु हजारों की भीड़ में पुरबलक के रूप में संवाद बोलते समय निर्भीक, स्पष्ट, लयबद्ध और मधुर आवाज। रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला के श्रीराम का जनकपुर दर्शन व फुलवारी प्रसंग में इस बाल पात्र के प्रथम प्रयास की सभी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। जो बालक स्कूल की कक्षा में खुलकर बोलने में लजाता हो, अनजान लोगों के सामने अपना नाम भी धीरे से बोलता हो, आखिर उसके पीछे कौन सी ताकत है, जिसने हजारों की भीड़ के सामने ऊंचे स्वर में संवाद अदा करने का हौसला भर दिया? कारण की खोज बहुत रोचक है और इस अदृश्य प्राप्त कारण का नाम ही श्रीरामलीला है।
दशरूपकम् में वर्णन है कि प्रियानुकरणम लीला… अर्थात अपने प्रिय का अनुकरण ही लीला है। लेकिन सोमवार को पता चला कि अगर प्रियानुकरण लीला का प्राप्य है तो लीलानुकरण साहस का कारक है।
परिवार के लोग बताते हैं कि, विनम्र जब तीन साल के थे तो इनके लिए रामलीला का मतलब मेला था, जहां इनका ध्यान गुब्बारे, खिलौने और मिठाइयों से थोड़ा आगे बड़े पुतलों और तोप की तगड़ी आवाज तक ही सीमित था।अगले वर्ष की रामलीला में आश्चर्यजनक रूप से एक नया अदृश्य आकर्षण जुड़ गया, जिधर बच्चा अनजान होकर खिंचते चला जा रहा था। वह अदृश्य आकर्षण था श्रीराम का चरित्र। रामकथा की संक्षिप्त कहानी से अब इन्हें मजा नहीं आ रहा था। न जाने कब कथा के अंदर की कथाएं जानने कि उत्सुकता इनकी बाल कौतूहल से आगे निकल चुकी थीं। जिज्ञासा और रामकथा की पिपासा की तृप्ति के लिए जरूरी था रामचरितमानस का पाठ जो कि तब चार साल की अवस्था के बालक के लिए अक्षर ज्ञान के अभाव में असंभव था।
अक्षराभाव में रामचरितमानस को पढ़े बिना भी अपने प्रिय नायक की समग्र कथा को जानने में रामलीला दर्शन से बल मिलने लगा था। मेला से हुई शुरुआत अब रामलीला दर्शक में रूपांतरित हो चुकी थी। शीघ्र ही रामलीला का ये बाल दर्शक रामलीला प्रेमी हो चुका था। दो साल के कोरोना अंतराल के उपरांत अब रामलीला प्रेमी ने नेमी होने की जिद ठान ली है।
विनम्र वर्ष 2022 की रामलीला में संवाद अदा करने वाले सबसे कम उम्र के पात्र हैं। हालांकि! पूर्व में रामजन्म वाले प्रसंग में बाल रूप के नंग-धड़ंग स्वरूप में विश्वप्रसिद्ध रामलीला के मंच तक पहुंचने का अवसर प्राप्त कर चुके हैं, लेकिन इस बार अपने अंतर्मन की प्रेरणा से विश्व के सबसे बड़े चलायमान मंच पर पात्र बनने का साहस स्वयं जुटा लिया तथा रामलीला व्यास हृदय नारायण पाण्डेय के उत्साह वर्धन से तुरंत ही आगामी रामलीला के अंतिम दिन सनकादिक मिलन और पुरजनोपदेश की लीला में अपनी पात्रता आरक्षित करा चुके हैं।
स्वर, और संवाद अदायगी का एक बड़ा हिस्सा अपने दादा बालकिशुन दीक्षित से पा लेने की उत्कंठा ने इनको भीड़ में खड़े होने की हिम्मत पैदा की। दादा जी पिछले चालीस वर्षों से निषाद राज की भूमिका का निर्वहन अपने ऊंचे स्वर, मार्मिक व भावपूर्ण संवाद के साथ करते आ रहे हैं, इस प्रेरक अहसास की छाया में अपनी सुंदर, निर्भीक व गत्यात्मक प्रस्तुति से विनम्र ने प्रथम प्रयास में ही रामलीला के मंचन क्षेत्र में एक अनुशासित पात्र के रूप में स्वयं के लिए भविष्य की संभावनाओं के द्वार खोल दिए।
सकारात्मक चित्र उकेरने हों तो आइए
डॉ. अवधेश दिक्षित बताते हैं कि नई पीढ़ी के बच्चों में सनातन संस्कृति के प्रति श्रद्धा और अपने असल नायकों को पहचानने की समझ विकसित हो, इस निमित्त रामकथा और श्रीरामलीला एक मजबूत यंत्र है। इस विश्वप्रसिद्ध रामलीला के माध्यम से बालमन पर सकारात्मक चित्र उकेरने हों तो आइए! अपने नन्हे-मुन्नों की अंगुली पकड़ कर परंपरा के पथ पर आगे बढ़ें।



