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Varanasi में RSS प्रमुख डॉ. मोहन भागवत : परिवार स्नेह मिलन कार्यक्रम का आयोजन, बोले सरसंघचालक- कुटुंब में आत्मीयता और सेवा से ही समाज परिवर्तन होता है

Varanasi : RSS प्रमुख डॉक्टर मोहन भागवत ने कहा कि समाज में परिवर्तन आत्मीयता और सेवा से ही आता है। समूह में तो पशु पक्षी भी रहते हैं, लेकिन सबको जोड़ने वाला, सबकी उन्नति करने वाला धर्म कुटुंब प्रबोधन है। यह परिवार में संतुलन मर्यादा और स्वाभाव को ध्यान में रखकर कर्तव्य का निरूपण करने वाला आनन्दमय सनातन धर्म है।

कहा, हमारे यहां कुटुंब प्रबोधन में ही समानता और बंधुता का भाव निहित है। रविवार को डॉ. मोहन भागवत BHU के स्वतंत्रता भवन सभागार में काशी महानगर द्वारा आयोजित कुटुंब प्रबोधन के परिवार स्नेह मिलन कार्यक्रम में शिरकत करने पहुंचे थे।

उन्होंने कहा जड़वादी और भोगवादी विचार के प्रसार से हमारे वैचारिक अधिष्ठान चले गये। हमारे यहां प्रारंभ से ही परिवार का अर्थ समस्त चराचर का अलग-अलग अस्तित्व, अनेक पूजा प्रकार, अनेक पद्धतियां होने के बावजूद सबका मूल एक ही है। कुटुंब का कोई संविधान नहीं है, इसका आधार केवल आत्मीयता होता है।

अपने समाज में व्यक्ति बनाम समाज ऐसा विभाजन नहीं है। उन्होंने सभागार में बैठे स्वयंसेवक परिवारों को संबोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति की पहचान कुटुंब से होती है।

जैसा समाज चाहिए वैसा कुटुंब होना चाहिए। कुटुंब में ही मनुष्य को आचरण सिखाया जाता है। पारिवारिक संस्कार आर्थिक इकाई को भी बल देता है परिवार में बेरोजगारी की समस्या नहीं हो सकती। आचरण की मर्यादा का ध्यान हमेशा रखना आवश्यक है।

जुलिएस सीजर की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वह बहुत पराक्रमी था, पर आचरण की मर्यादा न होने से संभव है कि कुछ वर्षों बाद उसे भुला दिया जाए। लाखों वर्ष पूर्व मर्यादा पुरुषोत्तम ने अपने आचरण के आधार पर जो मापदंड स्थापित किया वह आज भी हमारे जीवन का मार्गदर्शन कर रहे हैं।

उन्होंने सूर्य का उदहारण देते हुए कहा कि रात में अनगिनत तारे होते हैं पर दिन में केवल अकेला सूर्य होता है। वह प्रकाश ज्यादा देता है अर्थात जो निकटतम है और स्वयं प्रकाशित है वही प्रकाश दे सकता है। अतः व्यक्ति की समाज से निकटता और स्वतः प्रकाशित आचरण समाज के लिए आवश्यक है।

कार्यकर्ता अकेले कार्य नहीं करता उसका कुटुंब काम करता है। इसी तरह कुटुंब भी अकेले नहीं जीता बल्कि कई कुटुंबों का सह अस्तित्व होता है। योग्यतम की उत्तरजीविता को हम नहीं मानते। हमारी परंपरा कहती है कि जो बलवान वो सबका पोषण करेगा।

सप्ताह में किसी एक दिन पूरे परिवार के साथ भजन करके घर का बना भोजन ग्रहण करना और उसके बाद दो-तीन घंटे तक गपशप करना, इसमें अपनी वंश परंपरा कुलरीति का सुसंगत विचार और तर्कसंगत परंपराएं कैसे आगे बढ़ें इस पर बात करनी चाहिए।

हमारी भाषा, वेशभूषा, भवनसज्जा, यात्रा, भोजन इन सब पर चर्चा होनी चाहिए। उदहारण स्वरूप अपनी मातृभाषा न जानने पर रामचरित मानस हमसे पराया हो जाएगा। हम अपनी भाव भाषा से कट जाएंगे।मणिपुर का प्रसंग बताते हुए उन्होंने कहा कि मणिपुरी समाज के लोग उत्सव में मणिपुरी वेशभूषा ही पहनते हैं।

पारिवारिक संस्कार के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि जब पांडव कुंती के पास आशीर्वाद लेने गये तो कुंती ने कहा कि या तो विजयी हो या वीरगति को प्राप्त हो। परिवार में प्रत्येक सदस्य की अपनी अपनी भूमिका है।

कुटुंब चलाने में अपनी भूमिका का निर्वहन भली प्रकार से करें। सभी व्यक्ति केवल अपने परिवारों के लिए ही न जियें बल्कि समाज के लिए भी कार्य करें। कुटुंब प्रबोधन व्रत का दृढ़ता पूर्वक पालन करना जरूरी है इसमें चाहे कितना भी समय क्यों न लगे।

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