शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन : मां कालरात्रि के दरबार में भक्तों की हाजिरी, माता की कृपा से भय से मिलती है मुक्ति
Varanasi : शारदीय नवरात्रि के सातवें दिन महासप्तमी पड़ती है। इस दिन मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है। सदैव शुभ फल देने के कारण इनको शुभंकरी भी कहा जाता है। मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने के लिए जानी जाती हैं, इसलिए इनका नाम कालरात्रि है। मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप मां कालरात्रि तीन नेत्रों वाली देवी हैं। कहा जाता है जो भी भक्त नवरात्रि के सांतवें दिन विधि-विधान से मां कालरात्रि की पूजा करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
सप्तम भवानी गौरी का विग्रह विश्वनाथ गली में श्रीराम मंदिर में है। वहीं, शक्ति के उपासक कालरात्रि देवी की पूजा कालिका गली स्थित मंदिर में करते हैं। दोनों ही मंदिरों में देवी भगवती के भक्तों की आज भोर से ही दर्शन-पूजन के लिए कतार लगी हुई है। विश्वनाथ गली और कालिका गली जय माता दी और जय शिव-जय शक्ति के उद्घोष से गूंज रही थी। कालरात्रि मंदिर के महंत पंडित सुरेंद्र तिवारी ने बताया कि जब कोई दुश्मनों से घिर जाए, जब सब तरफ विरोध करने वाले ही नजर आएं ऐसे में मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए। उनकी पूजा करने से हर तरह की शत्रुबाधा से मुक्ति मिलती है। मां कालरात्रि का शत्रुबाधा मुक्ति मंत्र ‘त्रैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेन त्रातं समरमुर्धनि तेपि हत्वा… नीता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्त मस्माकमुन्मद सुरारिभवम् नमस्ते…’ मंत्र का जाप करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है।
ये चीजें हैं माता को पसंद
देवी कालरात्रि को प्रसन्न करने के लिए उनकी उपासना का मंत्र ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै…’ है। मां कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाने से समृद्धि की प्राप्ति होती है। देवी कालरात्रि को लाल चुनरी, लाल वस्त्र, मौली, श्रृंगार का सामान, घी या तेल का दीपक, धूप, नारियल, अक्षत, कुमकुम, गुड़हल का फूल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, मिश्री, कपूर, फल, मिठाई और कलावा उनके भक्त अर्पित करते हैं।
ऐसा है माता का स्वरूप
देवी कालरात्रि मां दुर्गा का सप्तम रूप है। माता अत्यंत दयालु-कृपालु हैं। यह देवी सर्वत्र विजय दिलाने वाली, मन और मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली हैं। यह मां दुर्गा की सातवीं शक्ति और मां कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं मां कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति हैं। मां के तीन नेत्र हैं। ये तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। ये गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए ये शुभंकरी कहलाईं अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है। मां कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम आसुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। मां ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु, रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।


