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उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर विशेष : शहनाई बजाकर किया था भारत की आजादी का स्वागत, ‘भारत रत्न’ से हुए थे सम्मानित

Varanasi : बिस्मिल्लाह खां दुनिया के एक मशहूर शहनाई वादक रह चुके हैं। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया है। संगीत की दुनिया में शहनाई को एक अलग पहचान दिलाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। वो बिस्मिल्लाह खां ही थे जिन्होंने भारत की आजादी के बाद सबसे पहले अपनी शहनाई की मधुर तान छेड़ी थी और लाल किले से प्रधानमंत्री के भाषण के बाद शहनाई वादन किया था। उस दिन से हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री के भाषण के बाद शहनाई वादन एक परंपरा की तरह बन गई। आज उनकी 107 वीं जयंती पर आइए जानते हैं उनसे उनसे जुड़ी कुछ बातें-

21 मार्च 1916 को हुआ था जन्म

बिस्मिल्लाह खां का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव गांव में हुआ था। बचपन में उनका नाम कमरुद्दीन था, लेकिन बाद में उनके दादा रसूल बख्श ने उनका नाम बदलकर बिस्मिल्लाह रख दिया था। उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का परिवार पिछले 5 पीढ़ियों से शहनाई बजा रहा है। उनके पूर्वज बिहार के भोजपुर रजवाड़े में दरबारी संगीतकार थे। ऐसा बताया जाता है कि बिस्मिल्लाह खां महज 6 साल की उम्र में अपने पिता पैगंबर खां के साथ बनारस आ गए और यहीं उन्होंने अपने चाचा अली बख्श ‘विलायतु’ से शहनाई बजाना सीखा।

14 साल की उम्र में पहली बार बजाई थी शहनाई

बिस्मिल्लाह खां के चाचा काशी विश्वनाथ मंदिर में शहनाई वादन किया करते थे। एक तरह से आप कह सकते हैं कि बिस्मिल्लाह खां को शहनाई वादन विरासत में मिली थी। उन्होंने सबसे पहली बार महज 14 साल की उम्र में इलाहाबाद के संगीत परिषद् में शहनाई बजाने का कार्यक्रम किया था। इसी के बाद से उन्होंने अपनी इस कला को और निखारा और फिर वो एक बेहतरीन शहनाई वादक के रूप में उभरे।

अपनी कमाई गरीबों को करते थे दान

वहीं, उनको जानने वाले लोगों ने बताया कि शहनाई बजाने के बाद उन्हें जो भी राशि मिलती थी, वे उस राशि को गरीबों में दान कर देते थे या फिर अपने परिवार की जरूरतों को पूरा करने में लगा देते थे। वे हमेशा दूसरों के बारे में सोचते थे। खुद के बारे में सोचने के लिए उनके पास समय नहीं होता था। लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने के बाद भी उनके अंदर जो सादगी थी, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। ऐसा कहा जाता है कि जब बिस्मिल्लाह खां साहब के जन्म की खबर उनके दादा जी ने सुनी तो अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हुए ‘बिस्मिल्लाह’ कहा और तब से उनका नाम बिस्मिल्लाह पड़ गया। लेकिन बिस्मिल्लाह खां का बचपन का नाम कमरूद्दीन खान बताया जाता है।

अंतरराष्ट्रीय कला मंचों पर गूंजने लगी शहनाई

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान भारतीय शास्त्रीय संगीत की वह हस्ती हैं, जो बनारस के लोक सुर को शास्त्रीय संगीत के साथ आजाद भारत के पहले राष्ट्रीय महोत्सव में राजधानी दिल्ली तक लेकर आई। उनकी शहनाई सरहदों को लांघकर दुनिया भर में अमर हो गई। इस तरह मंदिरों, विवाह समारोहों और जनाजों में बजने वाली शहनाई अंतरराष्ट्रीय कला मंचों पर गूंजने लगी। उन्हें साल 2001 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया। वर्ष 1956 में बिस्मिल्लाह खां को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1961 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया। वर्ष 1968 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। वर्ष 1980 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। वहीं, मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उन्हें तानसेन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

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