कभी चाहरदिवारी थी दुनिया, अब स्कूटर पर देश घुमा रहा बेटा : मां को लेकर काशी पहुंचे कलयुग के श्रवण कुमार, शख्शियत जानकर आप भी कहेंगे वाह
Varanasi : मिलिए इक्कीसवीं सदी में कलयुग के श्रवण कुमार डॉ. दक्षिणामूर्ति कृष्ण कुमार से। ये अपने पिता की पुरानी स्कूटर पर मां को भारत दर्शन के अलावा अन्य देश की सीमाओं पर घुमा-फिराने निकले हैं। उनका मकसद है वे सभी प्रसिद्ध मंदिरों और तीर्थ स्थल पर अपनी मां को लेकर जाएं। अभी तक वे 66057 किमी का सफर स्कूटर से कर चुके हैं। रविवार को सिवनी पहुंचे डॉ. कुमार ने कई जानकारियां साझा की। कर्नाटक के मैसूर स्थित वोगादी निवासी 42 वर्षीय डॉ. कुमार और उनकी 73 वर्षीय मां चूड़ारत्नम्मा के इस सफर की कहानी सुनकर हर कोई अचंभित हो रहा है।
टूटी हुई मोबाइल स्क्रीन, दो हेलमेट, बैग में कुछ जरूरी सामान, दो बोतल पानी और एक छाता लेकर केए-09 एक्स 6143 नंबर के 25 साल पुराने स्कूटर से मैसूर निवासी कृष्ण कुमार अपनी मां को दुनिया दिखाने निकले हैं। इस यात्रा को उन्होंने मातृ सेवा संकल्प यात्रा नाम दिया है। वह 66 हजार 889 किमी. की दूरी तय करते हुए तीन देशों का भ्रमण कर चुके हैं।
पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर रहे 44 वर्षीय कृष्ण कुमार ने शादी नहीं की। वह अपनी 74 वर्ष की मां चूड़ा रत्नम्मा को लेकर चित्रकूट होते हुए यहां शुक्रवार को बाबा की नगरी काशी पहुंचे।

कर्नाटक के मैसूर में उनकी मां ने ताउम्र संयुक्त परिवार की सेवा की। वन विभाग में कार्यरत रहे पिता दक्षिणामूर्ति के 2015 में निधन के बाद कृष्ण कुमार मां को अपने पास बंगलूरू ले आए। ऑफिस से लौटने पर एक शाम मां ने कहा कि पूरी जिंदगी घर में ही कटी है। कभी बाहर की दुनिया नहीं देखी। बकौल कृष्ण, मां की इस बात ने आंखें खोल दीं। मुझे लगा कि जिस मां ने उन्हें पूरी दुनिया देखने के काबिल बनाया, जीवन खपा दिया, उसे वह दुनिया दर्शन कराएंगे।
वर्ष 2016 में उन्होंने नौकरी छोड़कर यात्रा शुरू कर दी। उन्होंने पिता के पुराने स्कूटर को हमसफर बनाया, ताकि उनका जुड़ाव महसूस हो। इसी स्कूटर से मां के साथ वह नेपाल, भूटान व म्यांमार घूम चुके हैं। कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत दर्शन कर चुके हैं। कृष्ण बताते हैं कि जब लॉकडाउन लगा, वह यात्रा पर थे। भूटान सीमा पर पता चला कि सीमाएं सील हैं। कोरोना के उस दौर में एक माह 22 दिन भारत-भूटान सीमा पर गुजारे। जब पास बना तो एक सप्ताह में 2673 किमी. स्कूटर चलाकर मैसूर लौटे। गतिविधियां सामान्य होने के बाद 15 अगस्त 2022 से फिर यात्रा चालू है। वह होटल नहीं, बल्कि मठ-मंदिर पर ही रुकते हैं। यहीं प्रसाद लेते हैं।
न रह जाने पर इज्जत देने का क्या मतलब?
यात्रा की प्रेरणा के सवाल पर कृष्ण कहते हैं, दुनिया छोड़ जाने के बाद लोग माला चढ़ाकर दिवंगत को याद करते हैं। वास्तव में व्यक्तियों और रिश्तों का खयाल जीते जी करना चाहिए। मैं यह मलाल लेकर नहीं जीना चाहता था, इसलिए पिता के गुजरने के बाद मां को दुनिया दिखाने का निर्णय किया और यात्रा पर निकल पड़ा।
मां का दर्द समझा, निकला सफर पर
कंप्यूटर साइंस पढ़े डॉ. कुमार ने बताया कि एक दिन उन्होंने अपनी मां से पूछा कि वे किसी मंदिर में दर्शन के लिए गई थीं क्या? तब मां ने बताया कि वे तो अपने घर के पास का मंदिर भी नहीं गई। तब से उन्होंने ठाना कि वे भारत के सभी मंदिरों के दर्शन कराने मां को साथ लेकर जाएंगे। मां को पहले पूछा तो वह पहले इंकार करती रही, लेकिन बाद में बेटे की जिद और उसके प्रेम भाव को देखते हुए वह स्कूटर पर बैठकर भारत दर्शन करने के लिए राजी हुई।
पांच साल से जारी है सफर
डॉ. कुमार के अनुसार उनके पिता का निधन होने के बाद परिवार में दुख का पहाड़ टूट गया था। ऐसे में पिताजी की याद अपने साथ रखने के लिए उनका पुराना स्कूटर को ठीक कर वे मां को साथ लेकर मैसूर से 16 जनवरी 2018 को सफर पर निकले। अभी तक वे केरल, तमिलनाडू, कर्नाटक, पांडिचेरी, गोवा, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, कन्याकुमारी और अन्य राज्यों में जा चुके हैं। उन्होंने बताया कि माता पिता बोलने वाले भगवान हैं। वे हमारे साथ रहते हैं। उनकी सेवा ही सबसे बड़ी सेवा है और मां से बढ़कर कोई नहीं।
होगा नागरिक अभिनंदन
सम्पूर्ण भारतवर्ष एवं नेपाल भूटान और म्यांमार देश का स्कूटर से अपनी माता जी को यात्रा कराने वाले कलियुग के श्रवण कुमार डी. कृष्ण कुमार का काशी की जनता की ओर से शनिवार को श्री राम जानकी मन्दिर डी.43/75 सदानन्द बाजार जय नारायण इंटर कालेज के सामने रामपुरा में सायं 4:30 बजे नागरिक अभिनन्दन कार्यक्रम समायोजित किया गया है।