विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : आयुर्वेद के माध्यम से इन बीमारियों पर बेहतर तरीके से काबू पाया जा सकता है, जानिए एक्सपर्ट की सलाह
Varanasi : मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता के लिये प्रयेक वर्ष 10 अक्टूबर को मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इसकी आवस्यकता क्यों है इसका कारण है दिनोदिन बढ़ता हुआ स्ट्रेस। आज के भाग-दौड़ वाली जीवन शैली के कारण हर दूसरा व्यक्ति चिंता, थकान, अनिद्रा, अवसाद , स्मृतिनाश और माइग्रेन आदि मानसिक रोगों से ग्रस्त है। आधुनिकता ने हमारी जीवन शैली को बदलकर रख दिया है, उसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों और आधुनिकीकरण ने दिन और रात के भेद को खत्म कर दिया है। कार्यशैली में बदलाव आया है तो भागदौड बढ़ी है और इसके साथ ही बढ़ी है स्वास्थ्य संबंधित परेशानियां भी।
इन सब भागम भाग वाली जिंदगी से हर व्यक्ति तनाव में रहने लगा है और चिड़चिड़ेपन की प्रवृति बढने लगी है। इसी कारण अवसाद और अनिद्रा की आदि मानसिक बीमारी से सभी परेशान है। कुछ लोग इसके इलाज़ के लिए मनोचिकित्सक का सहारा भी ले रहे है। लेकिन आयुर्वेद के माध्यम से इन सब बीमारियों में बेहतर तरीके से काबू पाया जा सकता है। इसमे पंचकर्म की एक अतिप्राचीन विधा शिरोबस्ति और शिरोधारा विशेष रूप से लाभदायक है। आइये जानते हैं इसके बारे में राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय व चिकित्सालय के कायचिकित्सा और पंचकर्म विभाग के प्रवक्ता डॉ. अजय कुमार से।
शिरोबस्ति और शिरोधारा
प्रॉक्टर डॉ. अजय कुमार ने बताया कि शिरोबस्ति और शिरोधारा-शिरो का अर्थ है सिर और, धारा का अर्थ है, प्रवाह। शिरोधारा को आयुर्वेद की सभी चिकित्साओं में सबसे उपयोगी माना गया है। यह एक प्राचीन पंचकर्म की चिकित्सा विधि है जिसे भारत में लगभग 5,000 वर्षों से प्रयोग किया जा रहा है। इसकी का एक अन्य प्रकार है शिरोबस्ति। इससे भी शिरोधारा के समान लाभ मिलता है।
इसकी विधि
कहा, शिरो धारा के लिए एक ऐसा लोहे का या मिट्टी का बर्तन लिया जाता है जिसके तल में छेद हो तथा इस छेद को एक बती से बंद किया जाता है, इस बर्तन को उस शैय्या पर लेटे हुए व्यक्ति के मस्तक के ऊपर लटकाया जाता है। औषधीय तेल, क्वाथ या दूध के रूप में औषधीय द्रव को बर्तन में भरा जाता है, तथा इसके पश्चात इस द्रव को व्यक्ति के मस्तिष्क पर चार अंगुल ऊपर से धार के साथ डाला जाता है। रोगी की आंखों में औषधि न जाए इसके लिए उसके सिर पर एक बैंड या तौलिया बांध दिया जाता है। यह उपचार एक दिन में लगभग 45 मिनट तक दिया जाता है।
किन रोगों में है लाभकर
इनका प्रयोग बहुत सी परिस्थितियों में किया जा सकता है जैसे कि-
- माइग्रेन
- आंखों के रोग
- सायनासाइटिस
- स्मृति नाश
- अनिद्रा
- उच्च रक्तचाप
- पुराना सिरदर्द
- अधकपारी
कैसे कार्य करती है शिरोधारा और शिरोबस्ति
1.आयुर्वेद के अनुसार, वात व पित्त के असंतुलन से पीड़ित व्यक्तियों के लिए शिरोधारा व शिरोबस्ति अत्यधिक लाभदायक है।
2.शिरोधारा व शिरोबस्ति में प्रयुक्त द्रव व्यक्ति के मस्तिष्क, सिर की त्वचा तथा तंत्रिका तंत्र को आराम, पोषण प्रदान करता है, दोषों को संतुलित करता है।
3.केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) की कार्यप्रणाली को सुधारती है।
- शिरोधारा के दौरान, मस्तक पर गिरने वाले तेल की धार से एक निश्चित मात्रा में दवाब व कंपन पैदा होता है। निरंतर हो रहे शोध में ये बात पता चली है की धारा से होने वाला कंपन थेलेमस तथा प्रमस्तिष्क के अग्रभाग को सक्रिय करता है जिससे गहन निद्रा आने लगती है।
- लंबे समय तक सतत रूप से औषधीय द्रव डालने से पड़ने वाला दवाब मन को शांति प्रदान करता है तथा कुदरती निद्रा का आनंद देता है।
- शिरोधारा व शिरोबस्ति से तंत्रिका तंत्र को आराम मिलता है, मस्तिष्क शुद्ध होता है, थकान मिटती है, चिंता, अनिद्रा, पुराने सिरदर्द, घबराहट आदि से मुक्ति मिलती है।
सावधानियां
शिरोधारा व शिरोबस्ति दोनो पंचकर्म चिकित्सा विशेषज्ञ के द्वारा ही करवाना चाहिए, अन्यथा यह नुकसान पंहुचा सकता है।