@aajexpressdgtl #Exclusive #1stMay #LabourDay2020 : बोल कि लब आजाद हैं तेरे…!

बोल कि लब आजाद हैं तेरे, बोल जुबां अब तक तेरी है, तेरा सुतवां जिस्म है, बोल कि जां अब तक तेरी है, देख के आहंगर की दुकां में, तुंद हैं शोले, सुर्ख है आहन, खुलने लगे कुफ्फलों के दहाने, फैला हर एक जंजीर का दामन, बोल ये थोड़ा वक्त बहोत है, जिस्म-ओ-जबां की मौत से पहले, बोल कि सच जिंदा है अब तक, बोल जो कुछ कहने हैं कह ले। फैज अहमद फैज की ये नज्म याद है आपको? दरअसल, आज मजदूर दिवस है। बात को ज्यादा न घुमाते हुए असल मसले पर आते हैं, कोरोना वायरस से बचाव को लेकर लागू किए गए लॉकडाउन के नाते मजदूरों का वक्त बमुश्किल कट रहा है। देश के अलग-अलग प्रांतों, अलग-अलग जगहों, टोले, मोहल्ले, गांव, शहर आदि-इत्यादि जगहों पर फंसे मजदूर किस हालात में हैं…? महसूस करने की कोशिश करिए, होश काफुर्र हो जाएंगे। मजदूरों और लॉकडाउन के बीच का ब्लैंक स्पेस होश फाख्ता कर देगा।

घर लौटने की छटपटाहट

अब तक के रिकॉर्ड खंगालने पर पता चलता है, देश में लागू किया गया लॉकडाउन मजदूरों पर सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। उन्हें जब ये पता चला की जिन फैक्ट्रियों और काम धंधे से उनकी रोजी-रोटी का जुगाड़ होता था, वह न जाने कितने दिनों के लिए बंद हो गया है, तो वे घर लौटने को छटपटाने लगे।

निकल पड़े हैं पांव अभागे

ट्रेन-बस सब बंद थीं। घर का राशन भी इक्का-दुक्का दिन का बाकी था। जिन ठिकानों में रहते थे उसका किराया भरना नामुमकिन लगा। हाथ में न के बराबर पैसा था। … और जिम्मेदारी के नाम पर बीवी-बच्चों वाला भरापूरा परिवार था। तो फैसला किया पैदल ही निकल चलते हैं। चलते-चलते पहुंच ही जाएंगे। यहां रहे तो भूखे मरेंगे। बस फिर क्या था, सिर पर जिम्मेदारियों की गठरी उठाई और निकल पड़े हैं पांव अभागे।

जो फासला तय करना था

कुछ पैदल, कुछ साइकिल पर तो कुछ तीन पहियों वाले उस रिक्शे पर जो उनकी कमाई का साधन था। कुछ अन्य संसाधनों से भी छुप-छुपा कर निकले। जो फासला तय करना था वह कोई 20-50 किमी नहीं बल्कि 100-200 और 3000 किमी या उससे भी ज्यादा लंबा था।

आज फिर 1 मई आई है

गुजरे वक्त को खंगालने पर पता चलता है, 1886 की बात है। तारीख 1 मई थी। अमेरिका के शिकागो के हेमोर्केट मार्केट में मजदूर आंदोलन कर रहे थें। आंदोलन दबाने के लिए पुलिस ने फायरिंग की, जिसमें कुछ मजदूर मारे भी गए। प्रदर्शन बढ़ता गया, रुका नहीं। … और तभी से 1 मई को मारे गए मजदूरों की याद में मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। आज फिर 1 मई आई है। इस बार थोड़ी अलग भी है।