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सम्पन्न हुआ फसल अवशेष प्रबन्धन पर दो दिवसीय किसान मेला : प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में सही उत्तर देने वालों को मिला पुरस्कार

Varanasi : आचार्य नरेंद्र देव कृषि व प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या के अन्तर्गत संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, वाराणसी द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना के अन्तर्गत दो दिवसीय विराट किसान मेला एवम कृषि उद्योग प्रदर्शनी शुक्रवार को सफलता पूर्वक संपन्न हुआ। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्या रहीं। इस दौरान भाजपा महिला मोर्चा की जिलाध्यक्ष विनीता सिंह, पूर्व अधिष्ठाता काशी हिंदू विश्वविद्यालय डॉ. कल्याण सिंह, डॉ. एस.पी. सिंह, डॉ. ए.के. नेमा, निदेशक प्रसार प्रतिनिधि डॉ. पी.के. सिंह एवं कृषि विज्ञान केंद्र, वाराणसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ. नरेंद्र रघुबंशी की उपस्थिति रही।

इस अवसर पर डॉ. नरेंद्र रघुबंशी ने कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत करते हुए केंद्र की गतिविधियों पर विस्तार से बात रखी। कहा की पिछले माह प्राकृतिक खेती की पाठशाला का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के कर कमलों से हुआ इसके बाद से अबतक लगभग 500 से अधिक किसानों को जागरूक किया जा चुका है। कार्यक्रम में पश्नोत्तरी का आयोजन कराया गया जिसके अन्तर्गत सही उत्तर देने वाले दस किसानों/ छात्रों को जिला पंचायत अध्यक्ष के हाथों पुरस्कृत किया गया साथ ही साथ जनपद के 20 किसानों को वेस्ट डी कंपोजर एवम माल्यार्पण कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में को बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित जिला पंचायत अध्यक्ष पूनम मौर्य ने कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यों की सराहना करते हुए कहा की विगत एक दशक से खेती में मशीनों का प्रयोग बढ़ा है साथ ही खेतीहर मजदूरों की कमी की वजह से भी यह एक आवश्यकता बन गई है। ऐसे में कटाई व गहराई के लिए कंबाईन हार्वेस्टर का प्रचलन बहुत तेजी से बढ़ा है, जिसकी वजह से भारी मात्रा में फसल अवशेष खेत में पड़ा रह जाता है।

विशिष्ठ अतिथि के रूप में उपस्थित जिला पंचायत सदस्य राजेंद्र पटेल ने कहा की अवशेष प्रबन्धन में धन, मजदूर, समय आदि की आवश्यकता होती है और दो फसलों के बीच उपयुक्त समय के अभाव की वजह से भी वे ऐसा करने के लिए बाध्य हैं।उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों को जला देने से खेत साफ होता है।उन्होंने कहा की रसायनों के अधिकतर इस्तेमाल से कैंसर के मरीजों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है ऐसे में ऑर्गेनिक और प्राकृतिक खेती पर जोर देने की आवश्यकता है।पूर्व अधिष्ठाता, काशी हिंदू विश्वविद्यालय डॉ. कल्याण सिंह ने बताया की हमारे देश में सालाना 630-635 मि. टन फसल अवशेष पैदा होता है। कुल फसल अवशेष उत्पादन का 58 प्रतिशत धान्य फसलों से 17 प्रतिशत गन्ना, 20 प्रतिशत रेशा वाली फसलों से तथा 5 प्रतिशत तिलहनी फसलों से प्राप्त होता है।इस अवसर पर केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अमितेश, श्रीप्रकाश, डॉ. मनीष, डॉ. प्रतीक्षा ने भी तकनीकी जानकारी साझा किया। कार्यक्रम में केंद्र के प्रक्षेत्र प्रबंधक राणा पियूष, अरविंद, कृष्णा, अशोक, नागेंद्र, मिथून सहित उन्नतशील किसान कमलेश, इंद्रसेन, सर्वेश्वर सिंह सहित कुल 500 से अधिक किसान एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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