गांव की बात : कभी थे धरोहर, अब अस्तित्व का संकट
खत्म होता जा रहा है लोगों की पेयजल सुविधा के साथ धार्मिक परंपराओं का दौर
इंद्रकांत
Varanasi : कुएं कभी गांव की शान हुआ करते थे। लोगों की पेयजल सुविधा के साथ धार्मिक परंपराओं में भी इसकी भूमिका महत्वपूर्ण होती थी। गांव के यह धरोहर माने जाते थे। वर्तमान में कुओं की दशा बदहाल है। कई अपना वजूद खो चुके हैं, जो शेष हैं उनका अस्तित्व मिट रहा है। इन कुएं का जल जहां पूर्व में अमृत माना जाता था, वहीं अब यह जहरीला हो गया है। जो कुएं बचे हुए हैं उसमें या तो कूड़ा-करकट फेंका जा रहा है, अथवा इसका जल अत्यन्त गंदा व दूषित भरा मिलेगा। कुएं की महत्ता तो सब समझते हैं, लेकिन अफसोस इसकी दशा में सुधारने में कोई जिम्मेदार आगे नहीं आ रहा है। दर्जनों गांव में सैकड़ों से ऊपर कुएं स्थित थे। क्षेत्र का शायद ही ऐसा कोई गांव हो जहां के पूर्वजों ने कुओं की स्थापना न की हो।
ज्यादा नहीं तीन-चार दशक पूर्व अधिकांश कुएं का जल अमृत माना जाता था। शुद्ध पेयजल का एक मात्र सहारे के रूप में था। जिनके घरों के सामने कुएं स्थित थे, उनका शुमार संपन्न लोगों में होता था। मुस्लिम समाज में भी कुएं की महत्ता उल्लेखनीय रही है। गांव में शादी-विवाह हो या अन्य शुभ कार्य, इसमें कुएं को जरूर शामिल किया जाता था। शादी-ब्याह में दूल्हा-दुल्हन फेरी घूमकर धार्मिक मान्यता को पूरा करते थे। इसके अलावा गांव में यदि आगजनी की कहीं घटना होती थी, तो आग बुझाने में लोग फायर बिग्रेड नहीं बल्कि कुएं का सहारा लेते थे। घटते जलस्तर से जहां दिनों दिन कुएं का पानी दूषित होता गया वहीं, नई पीढ़ी आधुनिकता की चकाचौंध में इस परंपरा को भूलती गई। नतीजा यह रहा कि अब गांव में कुएं खोजने के बाद नाम मात्र मिलेंगे। कुछ का प्रयोग कूड़ा-करकट फेंकने के लिए हो रहा हैं तो कुछ झाड़ियों में छुपे अपना वजूद खो रहे हैं।अधिकांश को पाट कर उसका अस्तित्व ही खत्म कर दिया गया है।

