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Webinar : शास्त्रीय संगीत की अपनी एक प्रकृति होती है- विदुषी सुचरिता

Varanasi : वसंत महिला महाविद्यालय में संगीत गायन विभाग द्वारा आयोजित पांच दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला के तीसरी दिन का संचालन डॉ बिलंबिता बानीसुधा ने किया। सोमवार के कार्यशाला की विशेषज्ञ विदुषी सुचरिता गुप्ता थी। उन्होंने “विदुषी सविता देवी: बनारस घराने की एक अविस्मरणीय व्यक्तित्व” विषय पर अपना प्रयोगात्मक व्याख्यान प्रस्तुत किया। ‌उन्होंने सबसे पहले ठुमरी से शुरुआत की तथा उसकी तुलना श्रृंगार से करते हुए उसमें प्रयोग किए जाने वाले कुछ सामान्य ताल बताएं। जैसे कि जतताल, दीपचंदी, कहरवा इत्यादि। अपने गुरु को प्रणाम करते हुए उन्होंने पूरब अंग की ठुमरी से शुरुआत की, जिसके बोल हैं “सावन आई श्याम”।

अपने गुरु की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया की वह मानती हैं की शास्त्रीय संगीत की अपनी एक प्रकृति होती है और हर स्वर की प्रकृति किन्ही ऋतुओ से मिलती है। इसी क्रम में उन्होंने कुछ और ठुमरीया भी बतायी जो कुछ इस प्रकार हैं “थारे गौरी चित बांट बदरा की ओर”, “ताल- दीपचंदी, बोल-सारी रैन बिताय पिया आए”, “राग- बरवा, ताल- रूपक, बोल- सलोना सावन आयो रे”, “राग- मांज खमाज, बोल- अबकी सावन सैया हो घर रहो ना”, “राग- यमन, बोल- नंदलाला घर आवो रे सांझ भई घर आवो”, राग- कलावती, ताल- कहरवा, बोल- जियरा ना लागे सजन बिन सजनी। इसी क्रम में उन्होंने दादरा और उसके प्रकारो का वर्णन करते हुए “सावनी” एवं “शेरो शायरी का दादरा” से भी अवगत कराया। दादरा के साथ-साथ उन्होंने कजरी एवं झूला का भी वर्णन किया।

उन्होंने हिंडोल और झूला के बीच अंतर बताते हुए तथा उसके तीन प्रकार भी गाये जो थे बनारसी झूला “बंसी वाले सांवरिया”, मिर्जापुरी झूला “झूला धीरे से झुलावो सुकुमारी सिया है” और अवध झूला “झूला झूले रानी राधिका जी”। इसके साथ साथ उन्होंने श्रोतागणों के अनुरोध पर भी कई बंदिशें गायी। अंत में डॉ बिलंबिता बानीसुधा ने विदुषी सुचरिता गुप्ता का आभार प्रकट करते हुए सभी श्रोता गणों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

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