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Webinar : काशी के प्रश्न का उत्तर काशी ही दे सकती है : प्रोफ़ेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री

Varanasi : वसंत महिला महाविद्यालय अंग्रेजी विभाग द्वारा आयोजित पांच दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला का गुरुवार को अंतिम दिन रहा। आखिरी दिन दो सत्र हुए। प्रथम सत्र का संचालन परास्नातक की छात्रा अलिशा मोहंती व हर्षा रोय ने किया। इस सत्र के प्रथम वक्ता मिस निम्मी नलिका (फ़ेलो, इंडीयन इंस्टिटूट ओफ़ एडवांस स्टडी, शिमला) ने ‘हज़ारों शीशी के उपद्वीप मे उत्तरजीवित’ नामक विषय पर अपने विचार रखा। उन्होंने कहाँ कि श्रीलंका मे आर्मी महिलाओं पर अत्याचार करती है। इस मुश्किल परिस्थिति मे साहित्य केवल समाज के घटनाओं का चित्रण ही नहीं करता बल्कि साहित्य समाज के नियमों विधानों व क्रियाकलापों को बदलता भी है। साहित्य जीवन व दुनिया के तौर तारीको पर प्रश्न उठाती है और नए तारीक़ो के उत्पत्ति के लिए रास्ता व जगह प्रदान करती है।

इस सत्र के दूसरे वक्ता के रूप मे इसांका पी. गमाज (मुख्य कार्यकारी अधिकारी, आइएएसएच श्रीलंका) ने कहा की यह वर्कशाप बिल्कुल सटीक प्रश्नो एवं सरोकारो के साथ बहुत ही सही समय पर किया जा रहा है। तीसरे वक्ता के रूप मे डा. सुनीता आर्या (अंग्रेज़ी विभाग, वसंत महिला महाविद्यालय) ने ‘संकट से उत्तरजीविता तक सिनेमा में महामारियों का चित्रण’ नामक विषय पर अपने विचार रखी। सिनेमा जैसे ज़ोम्बी लैंड, ओऊटब्रेक, द ब्लैक डेठ, व कंटेजीयन आदि विषाणुओं के ख़तरनाक पहलुओं से हमें आगाह करती हैं और हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर्ती रहती हैं। सत्र के वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापन डा. सुनीता आर्या एवं डा. मंजरी शुक्ला एवं डा. मंजरी झुनझुनवालाने किया।

कला का उपयोग समाज के लिए हो तो वह बेहतर

दूसरे सत्र मे वैलेडिक्टरी का आयोजन हुआ जिसका संचालन डा. मंजरी झुनझुनवालाने किया। इस सत्र के मुख्य अतिथि के रूप मे प्रोफ़ेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री (कुलपति, हिमांचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय) रहें। इनका परिचय डा. मंजरी शुक्ला ने दिया। अतिथि का स्वागत महाविद्यालय की प्राचार्या प्रोफ़ेसर अलका सिंह ने किया। अपने उद्धबोधन में बतौर मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि काशी के प्रश्न का उत्तर काशी ही दे सकती है। कला की अभिव्यक्ति सचेतनता में हो तब इसकी सार्थकता है। कला का उपयोग समाज के लिए हो तो वह बेहतरीन होती है। उन्होंने सूडान के फोटोग्राफर द्वारा लिए गए उस तस्वीर की व्याख्या की जिसमें एक छोटा बच्चा भुखमरी का शिकार हो, बस मृत्यु के कगार पर है और गिद्ध उसे झपट नोंच लेने को तैयार है। उस दृश्य को कैमरे में कैद करने वाले फोटोग्राफर की बात करते हुए उन्होंने कहा कि उसकी तस्वीर ने निश्चित रूप से तहलका मचाया लेकिन उसने अपने सामाजिक दायित्व को मानवता के धर्म को नहीं निभाया। वह चाहता तो फोटो खींच सनसनी फैलाने से पहले भूख से मर रहे बच्चे को बचा सकता था। गिद्ध की प्रतीक्षा और फोटोग्राफर की प्रतीक्षा में कोई अंतर नहीं। इसलिए संकट के समय हमें ज़मीनी स्तर पर भागीदार होना होगा। मन की वेदना को अभिव्यक्त करने के अनेक तरीके हो सकते हैं। उन्हें कला के विभिन्न माध्यम में उकेरा जा सकता है, लेकिन हम समाज की वेदना के भागीदार बनाना होगा। आज यही हमारा दायित्व है। कहीं हमारी कलात्मक अभिव्यक्ति उस फोटोग्राफर की तरह तो नहीं? यह आज सोचने की जरुरत है। महामारी कई रूपों मे साहित्य मे परिलक्षित होती रही है। बड़ा साहित्य दुःख से ही उपजता है लेकिन उस दुःख की अनुभूति सच्ची हो। उन्होंने यह भी कहा की मानवता व करुणा की भावना को व्यवहारिक रूप मे लाना होगा।

अन्य वक्ताओं ने दिया व्याख्या

धन्यवाद ज्ञापन डा. सौरभ सिंह ने दिया और कहा की मानवता का आधार प्रेम ही है। प्रेम से बड़ी से बड़ी बाधा दूर हो जाती है। डा. सुनीता ने कार्यशाला का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस कार्यशाला मे ७० प्रतिभागियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम मे अंग्रेज़ी साहित्य के शिक्षक जैसे की प्रोफ़ेसर अनिता सिंह, प्रोफ़ेसर अलका सिंह, प्रोफ़ेसर बिंदा परंजपे, डा. संगीता जैन, डा. मंजरी झुनझुवाला ,डा. सौरभ सिंह, डा. रचना पांडेय, डा. सुनीता आर्य , डा. मंजरी शुक्ला, डा. विवेक सिंह, डा. अर्चना तिवारी व प्रियंका चक्रवर्ती ने भाग लेकर अंतिम दिवस के सत्रों को सफल बनाया।

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