Webinar : मां-प्रकृति की पूजा, सम्मान और संरक्षण करें- डॉ. मंजरी झुनझुनवाला
Varanasi : वसंत महिला महाविद्यालय अंग्रेजी विभाग द्वारा आयोजित पांच दिवसीय ऑनलाइन कार्यशाला के चौथे दिन तीन व्याखयान हुए। इस सत्र का संचालन परास्नातक की छात्राओं वर्तिका गिरी और प्राची चौहान ने किया। सत्र के प्रथम वक्ता प्रोफेसर रानु यूनियाल (अंग्रेजी व आधुनिक योरीपियनह भाषाएँ विभाग लखनऊ विश्वविद्यालय) ने निराशा के दौर में साहित्य और मरहम नामक विषय पर अपने गहन विचार रखा। उन्होंने कहा, जब जब मानवता संकट, नैराश्य, विपत्ति, दुख के चंगुल में आएगी तब-तब साहित्य हमारी मुक्ति के लिए हमारे साथ रहेगा। सच्ची कविता जैसे की कबीर रूमी की, भाषा, क्षेत्र, धर्म, जाति व वर्ग के बंधनों को तोड़ती हुई आगे बढ़ जाती हैं। विशुद्ध कविता दया प्रेम करुणा की अलख को जगाती हैं।
सत्र के दूसरे वक्ता के रूप में डॉ. जयदीप सारंगी (प्राचार्य न्यू अलिपूर महाविद्यालय कोलकाता) ने हथियारों का कवच वर्तमान कविता मे उत्तरजीविता के विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि कविता सामवेदना प्रेम करुणा दया कला से परिपूर्ण होती है। कविता लोगों को जोड़ती है व परस्पर सौहार्द की भावना को बढ़ाती हैं। तीसरी वक्ता डॉ. मंजरी झुनझुनवाला (अंग्रेजी विभाग वसंत महिला महाविद्यालय) ने मनुष्यों व प्रकृति के बीच का सम्बंध पुनर्विलोकन विषय की चर्चा करते हुए कहा कि आदिकाल से ही मनुष्यों व प्रकृति के बीच के तादात्म्य को स्थापित करना ही दोनो के विकास का सूत्र है। उन्होंने रामायण व महाभारत का उद्धरण देते हुए कहा की समय आ गया है की हम लाभ हानि के ऊपर उठे और मां-प्रकृति की पूजा-अर्चना सम्मान व संरक्षण करें।
सत्र के वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मंजरी शुक्ला, डॉ. सौरभ सिंह और डॉ. रचना पांडेय ने दिया। कार्यशाला में शामिल हुए लोगों ने अपनी मूल रचनाओं के माध्यम से महामारी के वैविध्य रूपों पर अपने विचर रखे। पृथा मुखेरजी ने ड्योढ़ी, बिनिता पाण्डेय ने सूर्यास्त, श्रुति शांडिल्य ने नुतन प्रकृतिस्थ, हर्षा हरिकुमार ने सारामंगो का अंधापन और वर्तमान कोविड-19 से पीड़ित दुनिया व नैन्सी तिवारी ने महामारी के प्रति मानवीय दृष्टिकोण और विकासवादी प्रकृति जैसी रचनाओं से कार्यशाला को सफल बनाया। कार्यशाला में 70 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में अंग्रेजी साहित्य के शिक्षक जैसे की प्रोफेसर अनिता सिंह, प्रोफेसर अलका सिंह, प्रोफेसर बिंदा परंजपे, डॉ. मंजरी झुनझुवाला, डॉ. सौरभ सिंह, डॉ. रचना पांडेय, डॉ. सुनीता आर्य, डा. मंजरी शुक्ला, डॉ. विवेक सिंह, डॉ. अर्चना तिवारी और प्रियंका चक्रवर्ती ने भाग लेकर चतुर्थ दिवस के सत्रों को सफल बनाया।
