विश्वप्रसिद्ध रामलीला : विराध वध से आरंभ, जयंत का नेत्र भंग, प्रभु श्रीराम ने धरती राक्षसों से मुक्त करने का संकल्प लिया, अनुसूईयाजी ने मां सीता को स्त्री धर्म सिखाया
Sanjay Pandey
Varanasi : प्रभु श्रीराम ने धरती राक्षसों से मुक्त करने का संकल्प लिया। विराध वध से इसका आरंभ किया तो जयंत का नेत्र भंग किया। नारद की आज्ञा से जयंत प्रभु चरणों में शरणागत हो गया। रामनगर में विश्वप्रसिद्ध रामलीला के पंद्रहवें दिन शुक्रवार को जयंत नेत्र भंग, अत्रि मुनि मिलन, विराध वध, इंद्र दर्शन, शरभंग- सूतीक्ष्ण-अगस्त्य ऋषि व गिद्धराज समागम, पंचवटी निवास और प्रभु श्रीराम द्वारा लक्ष्मण को गीता उपदेश लीला का मंचन किया गया। श्रीराम-लक्ष्मण व सीता के आश्रम आने पर अत्रि मुनि उनकी स्तुति करते हैं।
सीताजी अनुसूईयाजी का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लेती हैं। अनुसूईयाजी उन्हें स्त्री धर्म सिखाती हैं। अत्रि मुनि को प्रणाम और आशीर्वाद प्राप्त कर प्रभु श्रीराम आगे बढ़ते हैं। श्रीराम भाई व पत्नी समेत मतंग ऋषि के आश्रम में रात्रि विश्राम कर प्रात: उनसे विदा लेते हैं। मार्ग मे विराध राक्षस सीताजी को चुरा लेता है और राम-लक्ष्मण को अपना निवाला बनाने की धमकी देता है। श्रीराम सात बाणों से विराध का वध कर सीता को मुक्त कराते हैं। ब्रह्म लोक जाने की तैयारी में रथारूढ़ शरभंग ऋषि राम को देखकर ठिठक जाते हैं और श्रीराम दर्शन से अपनी अभिलाषा पूर्ण बताते हैं।
साथ ही चिता बनाकर वहीं बैठ जाते हैं, प्रभु श्रीराम द्वारा वर मांगने को कहने पर सीता-लक्ष्मण समेत अपने हृदय मे सदा सगुण रूप में बस जाने का आग्रह करते हुए योगाग्नि में भस्म हो जाते हैं। श्रीराम भूमि को राक्षस विहीन करने का संकल्प लेते हैं। ध्यान मग्न सूतीक्ष्ण मुनि के पास श्रीराम को लेकर अगस्त्य ऋषि के आश्रम जाते हैं, जिनकी आज्ञा से प्रभु पंचवटी की ओर प्रस्थान करते हैं। रास्ते मे गिद्धराज को स्नेह देते हैं और पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर निवास करते हैं। यहीं आरती कर लीला को विश्राम दिया जाता है।






