विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : झाड़-फूंक नहीं उपचार करायें, मानसिक रोगों से छुटकारा पायें
Varanasi : चुप्पेपुर की रहने वाली 45 वर्षीय नीलिमा (परिवर्तित नाम) को रात में सोते ही अज्ञात आवाजें सुनाई देने लगती थीं। नींद में उनकी बुदबुदाहट को परिजनों ने शुरू में गंभीरता से नहीं लिया लेकिन जब अनजान आवाज के बुलावे पर वह कालोनी की सड़कों पर टहलने लगीं तो परिवार के लोगों ने उन्हें रोकना शुरू किया। रोकने-टोकने पर वह चीखने-चिल्लाने के साथ ही जान देने की धमकी देने लगती थीं। नीलिमा के पति बताते हैं कि पहले तो हमें लगा कि यह किसी भूत-प्रेत का चक्कर है। झाड़-फूंक कराया पर जब कोई फायदा नहीं हुआ तो मंडलीय चिकित्सालय में उपचार शुरू कराया। पता चला कि नीलिमा मानसिक रोग से सिजोफ्रेनिया से ग्रसित हैं। लगभग छह माह के उपचार के बाद नीलिमा अब काफी ठीक हैं। उनकी दवाये अभी भी चल रही हैं।
शिवपुर के शिवम 23 वर्ष (परिवर्तित नाम) के व्यवहार में डेढ़ वर्ष पूर्व अचानक परिवर्तन हुआ और वह गुमसुम रहने लगा। घर से बाहर निकलना छोड़ने के साथ ही अपने कमरे में वह दिन-रात पड़ा रहता था। टोकने पर वह नाराज हो जाता था। कहता था कि किसी से उसकी बात हो रही है। बात करने वाला उसे अमेरिका बुला रहा है। वहां जाने के लिए वह हर रोज़ परिवार के लोगों से पैसे की मांग करता। और न मिलने पर लड़ाई-झगड़ा करता था। स्थिति तब और बिगड़ गयी जब शिवम ने घर में तोड़फोड़ करने के साथ ही पड़ोसियों पर ईंट-पत्थर फेंकना शुरू कर दिया। शुरू में शिवम के परिजनों ने भी इसे भूत-प्रेत का चक्कर माना लेकिन बाद में वे उसे मंडलीय चिकित्सालय ले गये। पता चला की उसे भी मानसिक रोग सिजोफ्रेनिया है। नियमित दवाओं के सेवन से अब उसकी हालत में काफी सुधार है।
शिव प्रसाद गुप्त मण्डलीय चिकित्सालय में मानसिक-मनोरोग विभाग के वरिष्ठ चिकित्सक डा. रवींद्र कुशवाहा बताते हैं कि नीलिमा व शिवम की तरह ही सिजोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज ऐसी हरकतें करते हैं, जिससे उनके परिजनों को लगता है कि वह किसी भूत-प्रेत का प्रभाव है। इस भ्रम में वह मरीज की झाड़-फूंक कराना शुरू कर देते है। नतीजा होता है कि उपचार के अभाव में रोग और गंभीर होता जाता है। डा. कुशवाहा बताते है कि वैसे तो मानसिक रोग कई तरह के होते हैं और उनके अलग-अलग लक्षण भी होते हैं लेकिन उनकी ओपीड़ी में आने वाले दस प्रतिशत मरीज सिजोफ्रेनिया से पीड़ित होते है।
क्या है सिजोफ्रेनिया
डा. कुशवाहा बताते हैं कि सिजोफ्रेनिया दुनियांभर में करोड़ों लोगों को प्रभावित करने वाला एक गंभीर मानसिक विकार है। यह किसी व्यक्ति के सोचने, महसूस करने व व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह किसी भी उम्र में हो सकता है। खास कर किशोर व युवाओं में यह देखने को अधिक मिलता है। सिजोफ्रेनिया से पीड़ित लोग वास्तविकता से संपर्क खो देते हैं, जो उनको, उनके परिवार के सदस्यों और शुभचिंतकों के लिए गंभीर संकट का कारण बनता है। झाड़-फूंक, जादू-टोना जैसे अंधविश्वासों को खत्म कर मरीज का उपचार करना चाहिए। इस रोग की दवाएं लम्बे समय तक चलती हैं और मरीज ठीक रहता है। वह कहते हैं कि सिजोफ्रेनिया के लक्षणों के बारे में जागरुकता जरुरी है, ऐसे रोगियों की पहचान कर समय से उचित उपचार कराया जा सके। वह बताते हैं कि शिव प्रसाद गुप्त चिकित्सालय के मानसिक-मनोरोग विभाग (कक्ष संख्या-10) में प्रत्येक सोमवार, बुधवार व शुक्रवार को सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक लगने वाली उनकी ओपीडी में ऐसे किसी भी मानसिक रोग से पीड़ित का उपचार कराया जा सकता है।
सिजोफ्रेनिया के लक्षण
• रात में नींद का न आना, उलझन, अपनों पर भी शक और उनसे भयभीत रहना
• उन चीजों को सुनना, देखना या महसूस करना जो उसके आसपास नहीं हैं
• खुद को समाज से अलग करना, शत्रुता या संदेह, आलोचना की चरम प्रतिक्रिया व्यक्तिगत स्वच्छता का ख्याल न रखना, सपाट, अभिव्यक्ति रहित टकटकी
• झूठे विश्वास या संदेह जो निश्चित व सत्य लगे,असामान्य व्यवहार
• लक्ष्यहीन रूप से भटकना, स्वयं को भूलना, न समझने योग्य बातचीत
• चेहरे की अभिव्यक्ति या भावनाओं का अभाव, एकाग्रता, स्मृति की समस्या
मानसिक बीमारी से बचाव के लिए क्या करें
डा. कुशवाहा कहते हैं कि मानसिक बीमारी से बचाव के लिए खुद जागरुक बनें व दूसरों को भी जागरुक करें। मानसिक रोग से खुद को बचाने के लिए जरूरी है कि आप प्रतिदिन योग-मेडिटेशन-व्यायाम करें, स्वस्थ खानपान रखें, तनाव से दूर रहें, प्रर्याप्त नींद लें, नशीले पदार्थों का सेवन न करें, परिवार व समाज में सक्रिय रहें, अपना समुचित ख्याल रखें।