World Press Freedom Day 2020 : मुझे गर्व है! मैं ऐसे मीडिया संस्थान में कार्य करता हूं जो मुझे या मेरे कलम को बंदिशों से मुक्त रखती है
अच्छा सच में World Press Freedom Day है! मने मान लिया जाए कि दुनिया मानती है कि प्रेस इस कदर सत्ता, ब्यूरोक्रेट्स, मोटी खाल वाले मालिकान के चंगुल में है कि उसे स्वतंत्र रूप से सांस लेने के लिए एक दिन का मौका दिया जाय वह भी 3 मई यानी 1 मई मजदूर दिवस के एक दिन बाद। वैसे सही भी है, मजदूरों से इतर मुख्यधारा के निचले मीडियाकर्मीयों की जिंदगी कहां है। मालिकान उन्हें दिहाड़ी मजदूरों की तरह ‘खबर की कबर’ खोदने के लिए लगाते हैं। तब जाकर वह चार पैसे पाते हैं।
ऊपर से उनके पैरों और कलम पर बन्दिशें और पहरे अलग से लगे होते हैं। तो जाहिर सी बात है की 364 दिन की कैद के बाद उन्हें एक दिन की रिहाई दे ही दी जाय। वरना इतने लंबे दिनों की गलाघोंटू दबाव से उनका लम्बालेट हो जाना तय ही रहता है। वैसे विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस से याद आया कि विश्व के कई देशों में प्रेस की आजादी मने पिजड़े में कैद रट्टू तोते सरीखे है। जैसे चीन, जापान, जर्मनी, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस उतना ही आजाद है जितना चिड़ियाघर में रहने वाला शेर। सीधे सपाट शब्दों में कहूं तो वहां की प्रेस पर वहां की सरकार का लगभग पूरा नियंत्रण है। इस लिहाज से हमारा भारत उनसे ठीक तो है मगर पूर्णतया स्वतंत्र कहना स्वतंत्रता शब्द का माखौल उड़ाना होगा।
आज भारतीय मीडिया (प्रिंट-इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल) की दशा किसी से छुपी नहीं है। हर नामचीन मीडिया मालिकान सत्ता शीर्ष के आगे नतमस्तक हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर। फिर किस हिसाब से हम प्रेस कि स्वतंत्रता की बात करते हैं? जबकि प्रेस की भूमिका सत्तापक्ष के खिलाफ एक ‘अस्थायी विपक्ष’ की होती है। जो सरकार की नीति और नियत की समीक्षा करती है। आज के हालात में आपको लगता है कि प्रेस आज सरकार की नीति और नियत की समीक्षा करती है..? नहीं न। यही कारण है कि बीते साल 2019 में वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत 2 पायदान और खिसक कर 140 वें स्थान पर आ गया।
इसका कारण देश के सत्ताधारी तो हैं ही मगर जनता भी उतनी ही जिम्मेदार है। क्योंकि हर व्यक्ति प्रेस और प्रेसकर्मियों से अपेक्षा रखने लगा है कि वह सच दिखाने की बजाय उनके मनमुताबिक खबर परोसें। हर व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का सपोर्टर है और वह चाहता है की पत्रकार उसके पसंदीदा दल के पक्ष में वाहवाही और दूसरे दल की आलोचना लिखे। उन्हें सच से कोई सरोकार नहीं है। ऐसे लोग अपने मनमुताबिक खबर न चलने पर पत्रकार को बिकाऊ बोलने से भी बाज नहीं आते। ऐसे में प्रेस मालिकान बहुसंख्यक जनता की डिमांड और सरकार के नब्ज की उतार चढ़ाव के हिसाब से प्रेसकर्मियों को खबर गढ़ने को कहते हैं। और लोग उसी हिसाब से प्रेसकर्मियों को बधाई और लानत भेजते हैं। खैर, विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की उन सभी प्रेस कर्मियों की बधाई जो नामचीन मीडिया संस्थानों में मजदूरी करते हैं। विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के हकदार वही हैं। क्योंकि स्वतंत्रता की बधाई उसे ही मिलती है जो कैद से आजादी पाया हो। मुझे गर्व है कि मैं ऐसे मध्यम मीडिया संस्थान में कार्य करता हूं, जो मुझे या मेरे कलम को बंदिशों से मुक्त रखती है।