न तोड़ पाएंगे, न दिखा पाएंगे बत्तीसी : शोध में आई चौकाने वाली रिपोर्ट- चबाने वाले दांतों की संख्या हुई कम, नहीं निकल रहे अक्ल वाले दांत, 32 की जगह अब इतने दांतो से काम चला रहे लोग
Varanasi : अक्सर आम लोग 32 दांत का जिक्र करते हैं। खुश हुए तो बत्तीसी न दिखाने और नाराज होने पर मार कर बत्तीसी छटकाने की धमकी भी दे देते हैं, लेकिन जल्द ही ऐसे मुहावरे कहानियों में सिमट कर रह जाएंगे। दरअसल, नई पीढ़ी में बत्तीसी हो ही नहीं रही। अब सिर्फ 28 दांत ही उग रहे हैं। ऐसा दिनचर्या और खानपान में बदलाव के कारण हो रहा है।

आजकल 15-20 फीसद युवाओं में थर्ड मोलर यानी अकल वाले दांत हो ही नहीं रहे हैं। जिन लोगों में हो रहे हैं, उनमें भी बेतरतीब ढंग से निकल रहे हैं और आगे चल कर उनके लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। इनमें मवाद की थैली बन जा रही है। इससे संक्रमण का खतरा बढ़ जा रहा है। वैसे तो 21वीं सदी में नई पीढी के बच्चों संग एक नई समस्या सामने आई है। नई सदी के दो दशक में तमाम तरह के रोगों ने जन्म लिया है।
उनमें से एक कोरोना से पूरी दुनिया लड़ रही है। लेकिन सबसे बड़ी समस्या है कि अब नई पीड़ी के ज्यादातर बच्चे खाना अच्छी तरह से चबा कर नहीं बल्कि निगल कर खा रहे हैं। कारण उनके मुख में चबाने वाले दांतों की संख्या ही कम हो गई है। अब अक्ल वाले दांतों का निकलना भी रेयर केस हो गया है। ये स्टडी है बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के दंत रोग विभाग की। दंत रोग विशेषज्ञ, बीएचयू दंत रोग संकाय के पूर्व प्रमुख प्रो. टीपी चतुर्वेदी का कहना है कि गत दो दशक से ऐसा देखने में आ रहा है कि मुख के अंदर खाना चबाने के लिए जो 12 दांत होते हैं उनकी संख्या घटकर आठ हो गई है। मतलब कि अब नई पीढी के बच्चों को खाना चबाने में भी दिक्कत हो रही है। ऐेसे में वो खाना अच्छी तरह से चबाने की बजाय निगल कर खाने को विवश हैं।

नहीं निकल रहे अक्ल वाले दांत
प्रो. चतुर्वेदी का कहना है कि अब अक्ल वाले दांत भी बहुत कम दिखते हैं। अक्ल दांत जिसे मोलर दांत (विस्डम टीथ) भी कहते हैं वो अब धीरे-धीरे अवशेषी अंग में शामिल होने की कगार पर है। वो बताते हैं कि आने वाले 5000 साल में ये मोलर दांत मानव के अवशेषी अंग हो जाएंगे। कुल मिला कर अब मुख में 32 नहीं 28 दांत ही देखने को मिल रहे हैं। 35 फीसदी युवाओं में बमुश्किल पूरे 32 दांत निकल रहे हैं, उनका भी इलाज कर दुरुस्त करना होता है, अन्यता 3-4 दांत एक-दूसरे पर बेतरतीबी से एक दूसरे पर चढ़ जाते हैं। प्रो. चतुर्वेदी बताते हैं कि आम तौर पर 18-25 साल की उम्र के बीच लोगों के 29वां से लेकर 32वां दांत उगता रहा है। इसे थर्ड मोलर दांत कहा जाता हैं। आम बोलचाल की भाषा में इसे अक्ल ढाढ़ या विस्डम टीथ भी कहा जाता है। ये विस्डम टीथ जबड़े के सबसे पिछे की ओर होते हैं। ये निकलना बहुधा कम हो गए हैं। वो बताते हैं कि 20 साल से देखा जा रहा है कि 25 फीसदी मरीजों के विस्डम टीथ निकल ही नहीं रहे हैं। ये निकलते भी हैं तो नई समस्या को जन्म देते हैं। मसलन, मसूड़ों का सूजना या लाल होना, मसूडों से खून निकलना, जबड़ों में सूजन, सांसों में बदबू, मुंह खोलने में कठिनाई आदि।
शहरी युवा ज्यादा समस्याग्रस्त
प्रो. चतुर्वेदी बताते हैं कि यह समस्या शहरी युवाओं में ज्यादा देखने को मिल रही है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि नई पीढी के बच्चे दांत से कड़ी चीजें कम खाते हैं या खाते ही नहीं। ऐसे में कम चबाने की आदत के चलते अब हमारे जबड़ों का आकार साइज छोटा होने लगा है। अक्ल वाले दांत उगने के लिए कोई स्थान ही नहीं बच रहा। इसके विपरीत गांवों में अभी ये स्थिति नहीं है। वहां बच्चे से बूढे तक चना-चबेना, ईंख, भुट्टा आदि चबा-चबा कर खाते हैं तो उनके साथ उतनी दिक्कत नहीं है।