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काम का दिखावा करने वाले: दिखावा भी एक हुनर है, और हुनर का सम्मान होना चाहिए, नहीं?

व्यंग्य

हमारे चारों ओर एक खास किस्म के लोग होते हैं जो अपने काम करने की कला से ज्यादा, काम का दिखावा करने में महारत हासिल रखते हैं। ये वो लोग होते हैं जो दिन भर “बहुत व्यस्त हूं” का नारा लगाते रहते हैं, लेकिन असल में उनके पास दिखाने के लिए काम की जगह सिर्फ बातें होती हैं।

सुबह ऑफिस पहुंचते ही ये लोग सबसे पहले एक गंभीर चेहरा बना लेते हैं, मानो दुनिया का सारा भार उन्हीं के कंधों पर हो। टेबल पर फैली फाइलें और कंप्यूटर स्क्रीन पर कई सारे खुले टैब्स देखकर ऐसा लगता है कि इनसे ज्यादा काम करने वाला कोई और नहीं है। लेकिन हकीकत ये है कि फाइलों के पन्ने उतने ही हैं जितने पिछली बार थे और स्क्रीन पर खुले टैब्स में से आधे सोशल मीडिया के हैं।

लंच ब्रेक में भी इन्हें आराम नहीं होता। “भई, आज तो इतना काम है कि लंच भी मुश्किल से हो पा रहा है,” ऐसा कहते हुए एक हाथ से खाने का निवाला और दूसरे से मोबाइल पर फेसबुक चेक करने का काम ये बखूबी कर लेते हैं। और अगर बॉस आसपास से गुजर जाए, तो इनका काम और भी निखर जाता है। अचानक से फोन पर कोई “जरूरी कॉल” आ जाती है या कोई “महत्वपूर्ण ईमेल” भेजना पड़ता है।

दिन के आखिर में, जब सब काम निपटा कर घर की ओर निकल रहे होते हैं, ये लोग टेबल पर सिर झुकाए, गंभीर मुद्रा में कुछ लिखते हुए दिखते हैं। हालांकि, पास जाकर देखने पर पता चलता है कि वो तो अगले दिन के लिए “डू लिस्ट” बना रहे होते हैं- जो अगले दिन भी वैसी की वैसी पड़ी रहती है।

असल में, काम का दिखावा करने वाले लोग अपने अंदर की उस कला को समझ चुके होते हैं, जिसमें मेहनत से ज्यादा मायने रखता है, दिखावे का प्रदर्शन। वे जानते हैं कि काम करना जरूरी नहीं, काम करते हुए दिखना जरूरी है। आखिर, उनकी माने तो “दिखावा भी एक हुनर है, और हुनर का भी सम्मान होना चाहिए।”

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